मीडिया से अपेक्षा यही की जाती है कि वह आम लोगों कि समस्या को उठाये और जनहित के लिए कार्य करे।वक्त के साथ बदलाव की लहर का प्रभाव मीडिया के नये-नये क्षेत्रों पर भी दिखायी पड़ता है। प्रश्न यह है कि नयी मीडिया का हमारे विकास के दौर में आज क्या योगदान है? और आज की मीडिया इसका किस तरह से निर्वहन कर रही है? और हम मीडिया से विकास की दौड़ में क्या उम्मीद कर सकते हैं?
भारत का विकास आमतौर पर उच्च वर्ग का ही विकास माना जाता है।और जबकि हमारा प्यारा भारत गांव में बसता है,जहां पर आधुनिक सुख सुविधाएं अभी भी लगभग न के ही बराबर है। हां ये बात अवश्य ही है कि जहां पहले कोई खबर लोगों तक देर में जाती थी वह आज तीव्र गति से पहुँच रही है । पर पुरानी कहावत हाय रे वही पुराने "ढाक के तीन पात"।समय बदल रहा है पर लोग वहीं के वही नजर आते हैं ।सेमिनार ,मीडिया गोष्ठी पर यदि विश्वास करें तो आकड़े सुधरे हैं पर आकड़े सारी सच्चाई को बयां नही करते हैं। मीडिया का कोई माध्यम हो तो वह बैगर पैसों के नहीं पाया जा सकता है यदि पैसा नहीं तो खबर कैसी? जिसे खाने के लिए अभी भी जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती है वह भला क्यों अपने पैसे यहां पर लगाना चाहेगा? और बात भी सही है कि पहले जीवन फिर और कुछ। क्यों कि सब कुछ तभी अच्छा लगता है जब पेट में दाने हों।
मीडिया की रफ्तार बहुत तीव्र हुई है कोई खबर हम कुछ ही पल में जान लेते हैं यदि सम्पूर्ण साधन शुलभ हो तब।सरकार का रवैया एकदम व्यवसायिक हो गया है एक तरह से धनलोलुकतापूर्ण।जबकि विश्व के कुछ देश ऐसे है जो सूचना के प्रसार के लिए बहुत अधिक मात्रा में धन खर्च करते हैं और वहां पर खबर आम जनता तक मुफ्त में दी जाती। ऐसा इसलिए कि जागरूकता बनी रहें ,देश और दुनिया से जुड़ाव बना रहे।
विकास क्रम में आज मीडिया ने भारत को एक अहम आयाम तक जरूर पहुँचाया है और सूचना के नये-नये आविष्कार आने वाले दिनों में इसे और भी तीव्र गति देगें।भारत का परचम विश्व पटल पर सुनहरे अक्षरों में अंकित होगा। ऐसी उम्मीद कर सकते हैं।
भारत का विकास आमतौर पर उच्च वर्ग का ही विकास माना जाता है।और जबकि हमारा प्यारा भारत गांव में बसता है,जहां पर आधुनिक सुख सुविधाएं अभी भी लगभग न के ही बराबर है। हां ये बात अवश्य ही है कि जहां पहले कोई खबर लोगों तक देर में जाती थी वह आज तीव्र गति से पहुँच रही है । पर पुरानी कहावत हाय रे वही पुराने "ढाक के तीन पात"।समय बदल रहा है पर लोग वहीं के वही नजर आते हैं ।सेमिनार ,मीडिया गोष्ठी पर यदि विश्वास करें तो आकड़े सुधरे हैं पर आकड़े सारी सच्चाई को बयां नही करते हैं। मीडिया का कोई माध्यम हो तो वह बैगर पैसों के नहीं पाया जा सकता है यदि पैसा नहीं तो खबर कैसी? जिसे खाने के लिए अभी भी जीतोड़ मेहनत करनी पड़ती है वह भला क्यों अपने पैसे यहां पर लगाना चाहेगा? और बात भी सही है कि पहले जीवन फिर और कुछ। क्यों कि सब कुछ तभी अच्छा लगता है जब पेट में दाने हों।
मीडिया की रफ्तार बहुत तीव्र हुई है कोई खबर हम कुछ ही पल में जान लेते हैं यदि सम्पूर्ण साधन शुलभ हो तब।सरकार का रवैया एकदम व्यवसायिक हो गया है एक तरह से धनलोलुकतापूर्ण।जबकि विश्व के कुछ देश ऐसे है जो सूचना के प्रसार के लिए बहुत अधिक मात्रा में धन खर्च करते हैं और वहां पर खबर आम जनता तक मुफ्त में दी जाती। ऐसा इसलिए कि जागरूकता बनी रहें ,देश और दुनिया से जुड़ाव बना रहे।
विकास क्रम में आज मीडिया ने भारत को एक अहम आयाम तक जरूर पहुँचाया है और सूचना के नये-नये आविष्कार आने वाले दिनों में इसे और भी तीव्र गति देगें।भारत का परचम विश्व पटल पर सुनहरे अक्षरों में अंकित होगा। ऐसी उम्मीद कर सकते हैं।
1 comment:
Apke vicharo se sahamat hun. thanks neeshoo ji
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