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Wednesday, September 3, 2008

क्या करते हैं हम भारतीय ? सही या गलत


धर्म और आस्था का प्रतीक ये मंदिर और इनमें विश्वास रखने वाले लोग। अपना-अपना विश्वास और अपनी आस्था । पर मेरा इसमें बिल्कुल भी यकीन नहीं । मुझे अभी तक जो कुछ दिखायी दिया और जो मैंने देखा वह बहुत ही भ्रष्ट और दुखद रहा। भगवान है या नहीं यह तर्क का विषय हो सकता पर किसी के विश्वास को बदल पाना आसान नहीं । क्यों बहुत से ऐसे सवाल हैं जिसका की उत्तर न मेरे पास है, और न ही जो भगवान को मानते है पर यह एक अलग विषय है।
मेरा तो आज का विषय है मंदिर के आड़ में जो गोरखधंधे होते हैं उनकी चर्चा। मंदिर का अपना एक संगठन होता है और इसमें भी उच्च पद पर बने रहने के लिए बहुत कुछ करना होता है।(कई तरह के गलत कार्य) ये सब कुछ हमारी पीठ पीछे होता है जिससे हम शायद अन्जान ही रह जाते हैं। पर जाने दीजिये वैसे मेरा यहां पर ये सब कुछ लिखने के पीछे जो बात है वह यह कि हम जो कुछ अभी तक करते है वह कितना सही और कितना गलत? मैं यह भी नहीं कह रहा हि आप लोग गलत है(जो भगवान में विश्वास रखते हैं)। हमको आपको ये जरूरत क्यों होती है कि मंदिर जाये ? इसका जवाब मुझे यही लगता है कि हमें बचपन से ही सिखाया गया है कि हमें भगवान को मानना है जरा आप खुद कल्पना करें? कि आप को एक ऐसा वातावरण मिलता जहां ये सब बात न होती तो क्या आज आप भगवान को माथा टेकते तो जवाब होगा नहीं।हमारे गलत काम और उसके लिए कुछ कम सजा मिले शायद प्रायश्चित जैसा कुछ।
ईश्वर पर बहुत कुछ पहले भी कहा जा चुका है और कहा जाता रहेगा पर बात मुझे एक ही समझ आती है कि खुद अच्छे हो तो कहीं जाने की जरूरत नही । जो भी समय आप हम मंदिर या भक्ति में खर्च करते है उसे मानव के उत्थान में लगाया जाना चाहिए।
वैसे भी "गीता" की एक ही लाइन न जाने कितनी बार मेरे कान से गुजर चुकी है"कि कर्म ही पूजा है" पर हमने इसे थोड़ा सा परिवर्तित कर दिया और यह हो गया कि"पूजा ही कर्म है" ।

2 comments:

राज भाटिय़ा said...

भाई मे भगवान को मानता हु गीता , रामायण को भी पबित्र मानता हू, लेकिन मंदिर नही जाता,जो कुछ आप ने लिखा हे अपनी जगह सही हे, मंदिर जाने मात्र से ही कोई पबित्र नही हो जाता या भगत नही बन जाता, कर्म योगी ही लेकिन अच्छे कर्म करने वाला ही पबित्र बन सकता हे,ओर गीता रामायण, कुरान, बाईबिल यह क्यो पबित्र हे इस बारे फ़िर कभी.
धन्यवाद एक सुनदर लेख के लिये

Udan Tashtari said...

५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.