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Monday, October 20, 2008

" लैम्पपोस्ट "


सड़क के किनारे का
वो लैम्पपोस्ट
कितना बेबस लगता है
आते-जाते लोगों को
चुपचाप देखता है
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों-शहर को
और
खुद अंधेरा सहता है
कपकपाती ठंड
सर्द हवा
कोहरे की धुध
कुत्ते की भौंक
सोया हुआ इंसान
यही साथी है उसके
शांत ,निश्चल
पर
आत्म विश्वास से भरा हुआ
खड़ा रहता है वह हमेशा
इंसान की राहों को
रोशन करने
खुद को जलाकर
कितना निःस्वार्थ
निश्कपट
निरछल
भाव से
करता है समर्पण
दूसरों के लिए ।

5 comments:

Anonymous said...

बढ़िया रचना कुछ लीक से हटकर धन्यवाद नीशू जी

Udan Tashtari said...

बहुत उम्दा, क्या बात है!

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही रोचक
धन्यवाद

betuki@bloger.com said...

बेहतरीन रचना। बधाई।

श्रीकांत पाराशर said...

Ab kahan milte hain aise lamp-post.Ek achhi rachna.