सड़क के किनारे का
वो लैम्पपोस्ट
कितना बेबस लगता है
आते-जाते लोगों को
चुपचाप देखता है
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों-शहर को
और
खुद अंधेरा सहता है
कपकपाती ठंड
सर्द हवा
कोहरे की धुध
कुत्ते की भौंक
सोया हुआ इंसान
यही साथी है उसके
शांत ,निश्चल
पर
आत्म विश्वास से भरा हुआ
खड़ा रहता है वह हमेशा
इंसान की राहों को
रोशन करने
खुद को जलाकर
कितना निःस्वार्थ
निश्कपट
निरछल
भाव से
करता है समर्पण
दूसरों के लिए ।
वो लैम्पपोस्ट
कितना बेबस लगता है
आते-जाते लोगों को
चुपचाप देखता है
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों-शहर को
और
खुद अंधेरा सहता है
कपकपाती ठंड
सर्द हवा
कोहरे की धुध
कुत्ते की भौंक
सोया हुआ इंसान
यही साथी है उसके
शांत ,निश्चल
पर
आत्म विश्वास से भरा हुआ
खड़ा रहता है वह हमेशा
इंसान की राहों को
रोशन करने
खुद को जलाकर
कितना निःस्वार्थ
निश्कपट
निरछल
भाव से
करता है समर्पण
दूसरों के लिए ।
5 comments:
बढ़िया रचना कुछ लीक से हटकर धन्यवाद नीशू जी
बहुत उम्दा, क्या बात है!
बहुत ही रोचक
धन्यवाद
बेहतरीन रचना। बधाई।
Ab kahan milte hain aise lamp-post.Ek achhi rachna.
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