सियासी जंग का खेल जो रायबरेली में शुरू हुआ है वह मात्र केवल स्वार्थ को ही इंगित करता है । मुख्यमंत्री मायावती नें प्रदेश के आर्थिक विकास को दाव पर लगा दिया है । रायबरेली में प्रस्तावित रेल कोच की फैक्ट्री के लिए आवंटित जमीन वापस लेकर जनता की अपेक्षाओं को गहरा झटका दिया है । मायावती सरकार ने कोर्ट में बेअजीब तर्क दिये हैं । फिलहाल अभी कोर्ट नें स्टे कर दिया है । उनका कहना है कि किसानों ने जमीन दिये जाने का विरोध किया है ।( आखिर दो साल से क्या सो रहे थे ये किसान) अगर ग्रामीण किसानों में जमीन लिये जाने की नाराजगी होती तो भला वो याचिका क्यों दायर करतें? राज्य सरकार का कहना है कि यह जमीन अनुसूचित जातियों और भूमिहीनों को दी जानी थी। भला मायावती क्या इस सवाल का जवाब दे सकती है कि अभी तक ये कार्य क्यों पूरा नहीं हुआ जबकि दो साल होने को है ।
मायावती का निजी स्वार्थ प्रदेश के आर्थिक विकास में रोड़ा अटका रहा है । वैसे जब जब राहुल राज्य दौरौ पर आते रहें है मायावती का विरोधी बयान आता रहा है । मायावती का संशय है कि शायद यह कारखाना अगर लग जाता है तो इसका चुनावी फायदा काग्रेस को हो सकता है ।फिर भी राज्य और केन्द्र में इस तरह का असमान्जस्य होगा तो कार्य कैसे आगे बढेगा । केन्द्रीय परियोजना तो ऐसी अटकी पड़ी रहेगी ।मायावती ने फैक्ट्री की जमीन वापस लेकर गलत पंरपरा की नीव डाली है । इसका खामियाजा राज्य की जनता को भुगतना पड़ेगा । संवैधानिक जिम्मेदारी को लाघंकर राज्य को निजी जागीर समझने की प्रवृत्ति महंगी पड़ सकती है ।
2 comments:
बेहतरीन तहरीर है...
सही कहा है साथ ही दो बातें- यूपी सरकार और केंद्र में कब बनी है कभी नहीं। दूसरा यूपी की जनता तो भोगती आई है भोगती रहेगी। वैसे सुरेश जी का कमेंट पूरी पोस्ट से ही बड़ा होगया। कई तर्क सही हैं उनके पर कई से मैं सहमत नहीं।
Post a Comment