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Monday, October 13, 2008

मेरा काव्य - " ये पल "


खुशियों का ये पल,
यूं ही गुजार दे,
इतना तुमको प्यार दें,

जाने क्या होगा कल ,
कैसे होगें आने वाले पल
जी ले इनको जी भरके ,
गम का न साया हो
खुशियों की छाया हो
चले साथ ये हवायें
ऐसा लगै जैसे कि
बिन बुलाये कोई आया हो,
हम तुम हो केवल
और
हो बातें अपनी
सोचें क्या - क्या हम तुम ,
बीते यूँ रातें अपनी ।
खुशियों का ये पल
यूँ ही गुजार दे।

7 comments:

फ़िरदौस ख़ान said...

खुशियों का ये पल,
यूं ही गुजार दे,
इतना तुमको प्यार दें,

बहुत अच्छी रचना है...

Vinay said...

आप भावना की क़द्र करता हूँ!

श्रीकांत पाराशर said...

Achhi prastuti hai.

रश्मि प्रभा... said...

खुशियों की छाया हो
चले साथ ये हवायें
ऐसा लगै जैसे कि
बिन बुलाये कोई आया हो,......waah !

दीपक कुमार भानरे said...

जाने क्या होगा कल ,
कैसे होगें आने वाले पल
जी ले इनको जी भरके ,
गम का न साया हो
खुशियों की छाया हो

बहुत ही सुंदर . बधाई .

mehek said...

खुशियों की छाया हो
चले साथ ये हवायें
ऐसा लगै जैसे कि
बिन बुलाये कोई आया हो
wah bahut khub

रंजना said...

waaaaaah..बहुत ही सुंदर . बधाई