लगाना चाहता हूँ गले
ये मौत तुझे
आओ कभी बिन बताये
भर लो आगोश में
अपने मुझे,
अब और नहीं
चाहता रहना इस जहां में
न कोई ख्वाहिश रही
न कोई चाहत रही
अब तो बस
इंतजार है तेरा
मिल जाऊ तुझमें ही
इस जहां से अलग
हो जाये खत्म
नामों - निशां मेरा ,
होती है घुटन खुद
आप ही
आओ कभी तुम
चुपचाप ही
और
चलूँ मैं
साथ तेरे ।
4 comments:
लगाना चाहता हूँ गले
ये मौत तुझे
आओ कभी बिन बताये
भर लो आगोश में
अपने मुझे,
अब और नहीं
चाहता रहना इस जहां में
" abhee se itnee nerasha kyun?????'
regards
ना बुलाओ भाई,
reverse gear नहीं है इस गाडी़ में
अभी नही जब खुद चिपटे गी तो मजबुरी है, लकेन अभि तो इसे दुर भगाना चाहता हुं
सुन्दर लेकिन बडी भायनक सुन्दर कविता.
धन्यवाद
बहूत बढिया लिखा हैा
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