जलता है खुद
दूसरों के लिए
करता है
समपर्ण अपना
निःस्वार्थ,
घटता है
तड़पता है
आखिरी दम तक
फिर भी
हारना नहीं जानता
मौत से अपनी,
दूसरों के लिए
करता है
समपर्ण अपना
निःस्वार्थ,
घटता है
तड़पता है
आखिरी दम तक
फिर भी
हारना नहीं जानता
मौत से अपनी,
पाता है
विजय
खुद पर
दूसरों से,
क्योंकि
मालूम है उसे
हस्ती अपनी
जलना है
इसलिए
जलता है ।
विजय
खुद पर
दूसरों से,
क्योंकि
मालूम है उसे
हस्ती अपनी
जलना है
इसलिए
जलता है ।
7 comments:
पाता है
विजय
खुद पर
दूसरों से,
क्योंकि
मालूम है उसे
हस्ती अपनी
जलना है
इसलिए
जलता है
good lines
regards
do visit my blog
congrates me i was the to comment
makrand-bhagwat.blogspot.com
खा रखी होती है कसम पीने वाले को मिटा देने की,
पता नहीं किस जन्म की दुश्मनी निभा रहा होता है ये।
नीशू जी...बहुत अच्छी रचना है आप की...विषय और भाव दोनों एक दम नए...बधाई...
नीरज
बहुत ही सुन्दर कविता, मान गये आप ने सिगरेट पर भी ......
धन्यवाद
क्या बात है..बहुत सही.
पाता है
विजय
खुद पर
दूसरों से,
क्योंकि
मालूम है उसे
हस्ती अपनी
जलना है
इसलिए
जलता है
बहुत खूब नीशू...इतनी सादगी से बहुत बड़ी बात कह दी आपने...थैंक्स
bahut achi kavy rachna, bahut goodh shabdon ka chyan, fine rythem.
good work
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