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Friday, October 10, 2008

मेरा काव्य - " आहिस्ता- आहिस्ता"


दायरा बढ़ता है प्यार का
दूरियों से
आहिस्ता-आहिस्ता ,
चाहत भी हुई
दिल से
आहिस्ता- आहिस्ता,
यूँ ही बातें बढी
खुद आपसे
आहिस्ता- आहिस्ता ,
महफिलें भी जबां हुई
खामोश ही
आहिस्ता- आहिस्ता ,
कलियां थी बनी फूल
बाग में
आहिस्ता- आहिस्ता ,
होती है खबर
दुनिया को
आहिस्ता - आहिस्ता ।

5 comments:

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुन्दर.
धन्यवाद

Pramendra Pratap Singh said...

बढिया, हई को हुई कर दीजिए

धन्यवाद

श्रीकांत पाराशर said...

Aapki post mere yahan khul nahin rahi. aapki rachnaon ka rasaswadan nahin kar pa raha hun. shayad font ki koi problem hai.

seema gupta said...

होती है खबर
दुनिया को
आहिस्ता - आहिस्ता ।
"good expresion"

regards

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर कविता स्पष्ट भाव सार्थक . बधाई स्वीकारें
समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारे और
पढ़ें उद्धव ठाकरे के बयां मुंबई मेरे बाप की पर एक रचना