कभी ये नकाबी चेहरा
हटाओ तो जरा
अपनी हकीकत दुनिया
को बताओ तो जरा,
यूँ ही छलते रहोगे
जमाने को तुम
कब तक?
माना कि-
है हुस्न का गुरूर
ये जालिम
तुझको
पर
खुद से ही
खुद को
बचाओगे
कैसे?
आ जाते हैं
गिरफ्त में तेरी
कुछ अनजान हसरतें
हरदम ही,
इस बार नहीं
बच पाओगे मुझसे
तुम भी,
क्योंकि मैं हूँ
खुद तुम्हारे
जैसा
मुझको हटाओगे
तो
खुद को ही
पाओगे।
ये वक्त का
तकाजा कहें
या
खेल किस्मत
का
जो दूर जाकर
भी
पास ही आओगे
मेरे।
क्या नहीं
पहचाना मुझको ?
मैं हूँ तुम्हारा
ही
नाकाबी चेहरा ।
हटाओ तो जरा
अपनी हकीकत दुनिया
को बताओ तो जरा,
यूँ ही छलते रहोगे
जमाने को तुम
कब तक?
माना कि-
है हुस्न का गुरूर
ये जालिम
तुझको
पर
खुद से ही
खुद को
बचाओगे
कैसे?
आ जाते हैं
गिरफ्त में तेरी
कुछ अनजान हसरतें
हरदम ही,
इस बार नहीं
बच पाओगे मुझसे
तुम भी,
क्योंकि मैं हूँ
खुद तुम्हारे
जैसा
मुझको हटाओगे
तो
खुद को ही
पाओगे।
ये वक्त का
तकाजा कहें
या
खेल किस्मत
का
जो दूर जाकर
भी
पास ही आओगे
मेरे।
क्या नहीं
पहचाना मुझको ?
मैं हूँ तुम्हारा
ही
नाकाबी चेहरा ।
4 comments:
badhiya hai.
वाह!!
अति सुन्दर!!
बधाई.........
waah...bahut hi badhiya....
बहुत ही सुंदर बढ़िया है धन्यवाद और बधाई साथ में ।
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