इस मंजिल के रस्ते में, क्या-क्या छूटा कुछ याद नहीं।
ये भी नहीं लगता कि कोई मंजिल इसके बाद नहीं।।
रूह थकी सी लगती है, ऐ यारो अब तो जिस्म के साथ,
दो पल चैन से कब सोया था यह भी ठीक से याद नहीं।।
माँ ने प्यार से समझाया था, क्या करना, क्या न करना,
क्या भूला क्या याद रखा, कुछ याद नहीं अब याद नहीं।।
मैंने कितनी मंजिलें बदली, रस्ते बदले, साथी भी,
क्या जो बना हूँ, वही बनना था कन्फ्यूजन है, याद नहीं।।
7 comments:
बहुत खूब। लेकिन भई कुछ तो याद रखना जरुरी था।
बढ़िया...
बहुत सुन्दर।
वाह वाह क्या बात है आपके याददाश्त की ।
बहुत खूब।
waah kya baat kahi,aakharisher bahut badhiya.
रूह थकी सी लगाती है ऐ यारो अब तो जिस्म के साथ ,
दो पल चैन से कब सोया था यह भी ठीक से याद नहीं बहुत प्रभावशाली है
ये line
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