इस बार का शहादत दिवस यानी बलिदान दिवस जैसे तैसे गुजर गया ।भगत सिंह , सुखदेव, और राजगुरू को २३ मार्च के दिन १९३० में फांसी पर लटकाया गया था । कभी कहीं भगत सिंह को ज्यादा प्रथामिकता दी जाती है ,जबकि सब एक साथ तीनों लोग जेल गये और साथ ही फांसी चढ़ गये । इस तरह से राजगुरू और सुखदेव उपेक्षित हो जाते हैं । कितनों को तो पता ही नहीं चला कि कल क्या था । इस बार का शहीद दिवस टाटा की नैनों के नाम रहा । और कुछ लोगों को तो ये याद रहा कि आज के दिन भारत वर्ल्ड कप हार गया था । कुछ सरकार का दोष तो कुछ हमारा कि आज हम इन लोगों को भूल गये हैं । कहीं न कहीं राजनीति भी यहां पर आती है ।
स्वार्थ और राजनीति के कारण कुछ नयापन नहीं सिवाय कोई मूर्ति या फिर सड़क नाम जरूर मिल जाता है इसके अलावा कहीं कुछ नहीं । युवा पीढ़ी का रूझान जिस तरह से रहा वो भी निराशा जनक रहा । युवा पीढ़ी को शहीद दिवस की कोई जानकारी ही न रही । अगर यही शायद वेलेंटाइन डे होता तो बताने की जरूरत ही न होती ।कहीं न कहीं बाजारवाद का बढ़ता हुआ प्रभाव इन शहीदों को उपेक्षित होने में सहायक है । आज जिस तरह से किसी भी दिवस को जैसे प्रस्तुत किया जाता है वह उसी रूप को साकार करता है । चुनाव ने इन वीरों की शहादत को कहीं पीछे छोड़ दिया । यह बहुत ही दुखद है और शर्मनाक भी ।
1 comment:
आज का दिवस टाटा नेनो के नाम से रहा, बहुत अच्छा क्योकि इस टाटा ने भी तो कई किसानो को मार मार कर या मरवा मरवा कर उन की उपजाऊ जमीन से उन्हे आजादी दिलबा दी ना रही जमीन ना ही उस जमीन की गुलामी, मरे भुखे, हमारी नेनो जिन्दा वाद
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