आज यादो कि गलियों में घूमते-घूमते कुछ दूर तक निकल गयी ।तभी राह में गुजरते हुवे वर्ष २००२ से मुलाकात हो गयी ।राह एक पर राही दो । मैं व वर्ष २००२,बातो का यादो का सिल-सिला आगे बढने लगा । वह अपने समय के सामाजिकप्राणियो द्वारा किये कार्यो कि सफलता के किस्से सुनाता रहा ।
बातो ही बातो में घ्यान ही न रहा हाँ कब गोमती नदी के तट तक पंहुच गए । मुझे भी वापस लौट चलने कि कोई जल्दी न थी उसकी बातो में रस लेने लगी ,तभी उसका स्वर कुछ बुझा-बुझा सा महसूस हुआ तो मेने पूर्ण संवेदना के भाव रखते हुए उसकी और देखा तो उसे भी अपनी बात पूर्ण करने का साहस हुआ ।
वह कहने लगा .......अचानक समाज सुधारकों को नारियों कि भी सुध लेने कि याद आ गयी तो नारी सशक्तिकरण के नाम ८ मार्च का दिन एलाट कर दिया । अब आगे क्या किया जाये कैसे नारियो कि प्रशंसा हासिल की जाये ? यह सोच गोमती नदी के हनुमान सेतु व् मनकामनेश्वर मंदिर के करीब तट पर चार दिवसीय प्रदर्शनी लगाने कि योजना बना दी । प्रदर्शनी में स्टाल भी लगा दिये पापड ,अचार,बड़ी-मुगोडी खिलोने ,कपडे दरी कालीन यानी कि घर ग्रहस्ती कि दुनिया को फिर रच दिया नारी को । याद दिला दिया यही सब है हर जगह तेरे लिए ,उन आयोजको में से कुछ बुदिध्जीवी भी थेउन्हें नारी के दुखो के कारणों कि याद आई ।
सोचा तो उन्हें याद आया नशाखोरी का, जो उसके बेटे,भाई, पिता व पति, अपनी मोज मस्ती के लिए किया करते है और सहती है नारी बदले में उसकी आर्थिक तंगी, पारिवारिक विघटन, परिवार में संस्कारो कि होती हत्या और उसके उपरांत मिलाता है नारकीय जीवन नारी को पुरुस्कार रव्रूप भोगने को ,तो लगा दिया एक स्टाल मद्यनिषेधविभाग से भी, पर हाय नारी तेरे भाग्य कि कैसी बिडम्बना ?
इस प्रदर्शनी का कोई प्रचार-प्रसार न किया लोगो का इस और ध्यान जाये ऐसा कोई प्रयास भी नहीं किया गया । न ही इसे समाचार साधको ने भी अपने समाचार पत्रों में जगह दी । तब एक समाचार साधना रत महाशय से दूरभाष पर संपर्क कर पूछा कि उन्हें नाराजगी नारी से है या नारी सशक्तिकरण से जो आपने अपने दैनिकसमाचार पत्रों में जगह न दी थोडी सी । इसकेलिए झट दुसरे ही दिन अखबार में बड़ी सी खबर छाप कर अपने कर्तव्यो कि इति श्री कर ली उन महाशय ने फिर नारियो ने ही अपने परिचितों से मिलकर दूरभाष का प्रयोग कर इस प्रदर्शनी कि सूचना दी। अंतिम दो दिन लोगो कि भीड़ उमड़ कर आयी लोगो से जानकारी मिली कि इस प्रदर्शनी के लगाने कि जगह कि सही जानकारी तक प्रसारित नहीं हुई इसलिए वे नहीं आ सके । अब तक अबला तेरी यही कहानी,तेरी कदर शासन-प्रशासन ने भी इतनी सी जानी बात तो बहुत छोटी थी पर शायद उससे दिल को ठेस लग गयी यह सब सुन मेरा ह्रदय भी विकल हो गया मैंने वापसी कि राह थामली ।
प्रस्तुतिकर्ता- सुरभि
1 comment:
aapne kafi achchha likhne ka prayash kiya hai per kuchh baten hain jaha mujhe shqayat hai... ek to jab sarkar ne aapko adhikar diya tab uska prayog karne se darti hain aur yadi shqayat kr bhi detin hain to fir turant pichhe hat jati hain... bhale hi sarkar ya samaj kitna bhi samanikaran ki neeti kyu na apna le per jo niyam vidhata aur prakriti ne bana diye use aap badal to nahi sakte na.. ha samanjasy jaroor baithane ka prayas kiya jana chahiye... per aap karne se darti hain......
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