थोड़ी अलग शैली की कविता लगी आपकी। पहले तो लगा की शायद मै पूरी कविता देख नही पा रहा हूँ लेकिन फ़िर एहसास हुआ की कविता इतनी ही है। कई बात ऐसा होता है की कविता के भाव कुछ शब्दों में ही सिमटे होते हैं और हम लंबा बयां ढूँढते हैं...खैर...अब समझ में आई आपकी शैली...और आदतन, एक कवि की भेंटस्वरुप, आपकी कविता को अपनी ४ पंक्तियाँ समर्पित कर रहा हूँ....
अंतर्मन बस एक झरोखा सच है या फ़िर कोई धोखा मन की गति तो मन ही जाने भला सोंच के भी क्या होगा
चाल न समझूं, रंग न जानू किसी रूप में न पहचानू अभी परे है मेरी समझ के फ़िर भी इसकी बात मै मानू
आखिर क्या है ये मन चिंतन? स्पंदन? या बस एक कल्पना का बंधन?
9 comments:
मन बड़ा ही चंचल है .
आपके मन की बात अच्छी लगी
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
मन की बात सुन्दर कही आपने
आपका मन। हमारा मन। हम सब का मन।
man ko bha gai tumhari"man".
मन एकाग्र है चंचल है ।
बिल्कुल मन की कही ।
ये मन बडा चंचल है
जितना इसे समझाऊं
उतना ही मचल जाए
बहुत खूब
थोड़ी अलग शैली की कविता लगी आपकी। पहले तो लगा की शायद मै पूरी कविता देख नही पा रहा हूँ लेकिन फ़िर एहसास हुआ की कविता इतनी ही है। कई बात ऐसा होता है की कविता के भाव कुछ शब्दों में ही सिमटे होते हैं और हम लंबा बयां ढूँढते हैं...खैर...अब समझ में आई आपकी शैली...और आदतन, एक कवि की भेंटस्वरुप, आपकी कविता को अपनी ४ पंक्तियाँ समर्पित कर रहा हूँ....
अंतर्मन बस एक झरोखा
सच है या फ़िर कोई धोखा
मन की गति तो मन ही जाने
भला सोंच के भी क्या होगा
चाल न समझूं, रंग न जानू
किसी रूप में न पहचानू
अभी परे है मेरी समझ के
फ़िर भी इसकी बात मै मानू
आखिर क्या है ये मन
चिंतन?
स्पंदन?
या बस एक कल्पना का बंधन?
बहुत सुंदर ... मन पर रचना।
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