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जन संदेश
Monday, March 16, 2009
प्रेम पथ[ एक कविता] - कवि विनोद बिस्सा
इस पथ जाऊं या उस पथ या किस पथ जाऊं असमंजस दो राहे पर खड़ा सोच रहा वह कौन सा पथ सुपथ नहीं समझ पा रहा वह लाख कोशिशों के बाद विद्वेश और नफरत का नहीं पथ एक ही सुपथ वह प्रेमपथ बस प्रेमपथ,
8 comments:
विनोद जी, सही लिखा आपने एक पथ प्रेमपथ , बस प्रेमपथ
प्रेम के पथ में चारो ओर प्रेम ही प्रेम है.
अति सुन्दर रचना सर जी । बस एक पथ प्रेम पथ । बधाई
वाह क्या बात कही ......सिमित शब्दों में बहुत ही गहरी बात....
बहुत सुन्दर रचना.
बिस्सा जी की कविता पढ़वाने का आभार. ये होली वाले बरसते रंग तो हटालो, अब तो पंचमी भी निकल गई, मेरे भाई!!! :)
बहुत बढ़िया रचना बिस्सा जी को बधाई और आपको प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
wah , supath, bas prem path, ye to hamari hi colony ke nikle, jidhar prem path jata hai, kavita se parichay ke liye dhanyawaad.
बहुत ही सूंदर कविता धन्यवाद
aap sabhi kaa bahut bahut aabhar ..... shubhkamanayen......
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