जन संदेश
Friday, March 13, 2009
" जाने क्यूँ " - नजर- ए- गजल
'चूक' हुई या 'खोट' थी कोई आखिर क्यूँ नाकाम हुए।
नेक नीयत रखी थी हमने, जाने क्यूँ बदनाम हुए।।
प्यार की पौध लगाकर हमने खाद वफ़ा की डाली थी,
आज दरख़्त वो मुरझाया है, ऐसे क्यूँ अंजाम हुए।।
यूँ तो तेरी जानिब से भी प्यार ही प्यार मिला हमको,
बंजर आज हुआ क्यूँ रिश्ता, गुलशन क्यूँ शमशान हुए।।
छोटी-छोटी बातें, यादें, सपने कहते-सुनते थे,
पहले जैसा हर मंजर है, फिर हम क्यूँ अंजान हुए।।
प्यार मुहब्बत की बातें अब बेमानी सी लगती हैं,
हर सू जख़्म के ताने-बाने, मंजर ये क्यूँ आम हुए।।
'चूक' हुई या 'खोट' थी कोई आखिर क्यूँ नाकाम हुए।
नेक नीयत रखी थी हमने, जाने क्यूँ बदनाम हुए।।
लेबल:
काव्य,
गजल,
जाने क्यूँ,
पंकज तिवारी,
प्यार
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11 comments:
क्या बात है, नीशू जी !!
आप तो बिजली गिरा रहे हैं शेरो से.
उम्मीद है वो "कमेन्ट" वाले भाई जी भी पढ़ रहे होंगे.
are wah neeshu kamaal kar diya, wah wah wahhhhhhhhhhhhhhhhhhhh. behtareen gazal itne achhe shayar hokar ghabra gaye the, kuchh to log kahenge , logon ka kaam hai kahna..............
meri or se is rachna ke liye badhai.
saath hamare raho hamesha , door nahin jaana mere bhai.
aise hi dard sah sah kar to achchi rachnayen banti hain.
छोटी-छोटी बातें, यादें, सपने कहते-सुनते थे,
पहले जैसा हर मंजर है, फिर हम क्यूँ अंजान हुए।।
badhiya kaha
क्या बात है, बहुत बढ़िया कहा..जाने क्यूँ बदनाम हुए.
आप तो और निखर गए इस बे मौसम बरसाए से
उन सज्जन को धन्वाद जाना ना भूलियेगा
बहुत बढ़िया नीशू...!!
बहुत सुंदर लिखा ... बधाई।
नीशू जी बहुत ही सुंदर शेर.
धन्यवाद
छोटी-छोटी बातें, यादें, सपने कहते-सुनते थे,
पहले जैसा हर मंजर है, फिर हम क्यूँ अंजान हुए।।
waah bahut khub kaha,badhai.
नीशू जी…वाकई बड़े उम्दा शेर हैं
बधाई
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