बसंत की फुहार में,
फागुन की बयान में,
आम के बौरों की सुगंध,
दूर -दूर तक फैली है,
कोयल की कूकें,
मधुरता घोलती हैं
खेतों में लहलहाती
गेंहूँ की बालियां,
और
सरसो के फूलों पर,
मडराती मक्खियां,
गुनगुनी धूप में आनंदित हैं।
पंछियों की चहचहाहट,
कलियों की किलकिलाहट,
भौंरों की गुनगुनाहट से
प्रकृति रंग चली है,
हवाएं मचल रही हैं,
घटाएं बदल रही है ,
प्यार बरस रहा है चारों तरफ,
बसंत की फुहार में,
फागुन की बयार में।
6 comments:
हवाएं मचल रही हैं,
घटाएं बदल रही है ,
प्यार बरस रहा है चारों तरफ,
बसंत की फुहार में,
फागुन की बयार में।
" in pakntiyon ko pdh kr lgaa jaise sach mey hi hr trf bhaar chaa gyi ho..sundr.."
Regards
बसंत की फुहार में,
फागुन की बयार में।---ऐसा मौसम-फिर तो यह उम्दा भाव निकलेंगे ही!! :)
बसन्त की बहार है,
होली की फुहार है,
कोयल बोल रही है,
मधुर-रस घोल रही है,
यही तो कविता है।
सरसों फूली, टेसू फूले,
आम-नीम भी बौराये हैं।
ऐसा लगता है जैसे
अब दिन होली के आये हैं।
shahad ke jaisi mithi kavita bahut badhai
अच्छी लगी यह बसंत बयार में लिखी कविता
Vasant ka sundar chitran kiya hai aapne....
Post a Comment