आज अचानक भीड़ में चलते- चलते उससे मुलाकात हो गयी । जाने कितने महीने बीत गये होगें दीदार को कि एकबारगी पहचानना मुश्किल था । खोयी हुई तस्वीर आखों के सामने आते ही एकाएक यकीन ना हुआ । नजरें मिलते ही नजरें झुक गयी वो मुझे न देख रही थी पर मैं उसको ही घूर रहा था ....... वह कुछ न बोली । तो मैंने ही पूछ लिया कैसी हो ? ( आज भी वह बिल्कुल वैसी ही लग रही थी जैसे की पहली मुलाकात में लग रही थी, उसका चमकदार चेहरा शांत था , व्याकुलता कुछ जरूर थी शायद उसे यह मुलाकात विश्वसनीय ना लगी रही हो)........। उसने धीरे से उत्तर दिया ठीक हूँ । उसने पूँछा- आप कैसे हैं? ( तुम से आप कहना कितना अजीब और आश्चर्यजनक लगा ) असहज महसूस करते हुए मैंने कहा - मैं भी ठीक हूँ । जिंदगी कट रही है किसी तरह से ........।
बातें होती रही ....पुरानी सारी बातें ताजी होती रही आज हम वहीं पर मिले हैं जहां हम अक्सर मिलते थे । पर आज मुझसे वो इतनी पास होती हुई भी बहुत दूर है , मैंनें कहा - तुम्हारी पढ़ायी कैसी चल रही है ? जवाब दिया - सब खत्म हो चुका है ,अब बस किसी तरह से यूँ ही ये सफर पूरा हो जाये बस... इस तरह का जवाब मुझे बिल्कुल भी अच्छा न लगा फिर भी मैं कोई प्रति उत्तर न दिया । पता नहीं उसको अच्छा लगेगा या फिर हो सकता न भी लगे जबकि मैं कुछ भी कहता वह बुरा न मानती थी ,पर अब समय बदल चुका था , वक्त बीता हुआ कल हो चुका था .... वो खुश है या नहीं मैं जानना चाहता था पर उसके जवाब से मैं कुछ न जान पाया और उसने कुछ बताया भी नहीं । कुछ देर औपचारिक बातें होती रही फिर उसने जाने का आग्रह किया तो मैं कुछ न बोल सका सिर्फ सिर हिला दिया( आज मैं क्या बोलू सारे अधिकार खो चुका हूँ......... जिसके लिए पल पल जीता था ,मरना था, हंसता रोता था वह खुश नहीं है । उसने जाते हुए कहा हो सकता है फिर कभी मुलाकत हो जाये ऐसे ही .....आखिर में कहा मुझे तुम से शिकायत है ...........और रहेगी ?
फिर चली गयी वह , मैं उसे आखों से ओझल होते तक देखता रहा फिर सर झुकाये बस यही सोचता रहा कि मुझसे शिकायत है ? आखें भर आयी अपने आप ही और फिर उठकर चल दिया अपने जीवन यात्रा पर ..................
6 comments:
"uthkar chal diya apne jivan yatra par...."
haan dost lagbah aadhe se zayada logon ki yahi kahani hai par....
...aur bhi gum hai zamane main mohabbat k siwa...
bhavuk shabd,sunder bhav.
भावुक प्रसंग.. सुन्दर अभिव्यक्ति
सोचती हूँ कि ऐसा क्यों होता है?
घुघूती बासूती
रोचक भाषा में संवेदनशील लेखन ....बहुत अच्छा लगा पढ़ कर.
नीरज
mujhe tumse shikayat hai,
magar main kah nahin sakta.
achha prasang.
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