सड़क के किनारे का
वो लैम्पपोस्ट,
कितना बेबस लगता है ,
आते-जाते लोगों को ,
चुपचाप देखता है ,
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों शाहर को,
और
खुद अंधेरा सहता है,
कपकपाती ठंड,
सर्द हवा,
कोहरे की धुंध ,
कुत्ते की भौक,
सोया हुआ इंसान ,
यही साथी हैं उसके,
शांत , निश्चल
पर आत्मविश्वास से ,
भरा हुआ,
खड़ा रहता है वह,
हमेशा,
इंसान की राहों को ,
रोशन करने ,
खुद को जलाकर,
कितना निःस्वार्थ,
निश्कपट,
निरछल
भाव से,
करता है अपना
समर्पण ,
दूसरों के लिए ।।
11 comments:
खुद जल कर ही दूसरो के जहान को रोशन किया जा सकता है .. अच्छी लगी इस संदर्भ में आपकी यह कविता
PLEASE PROMOTE IT ON YOU BLOG CREAT AWARENESS
मै अपनी धरती को अपना वोट दूंगी आप भी दे कैसे ?? क्यूँ ?? जाने
शनिवार २८ मार्च २००९समय शाम के ८.३० बजे से रात के ९.३० बजेघर मे चलने वाली हर वो चीज़ जो इलेक्ट्रिसिटी से चलती हैं उसको बंद कर देअपना वोट दे धरती को ग्लोबल वार्मिंग से बचाने के लियेपूरी दुनिया मे शनिवार २८ मार्च २००९ समय शाम के ८.३० बजे से रात के ९.३० बजेग्लोबल अर्थ आर { GLOBAL EARTH HOUR } मनाये गी और वोट देगी
वाह लैंप पोस्ट के दर्द को बहुत अच्छा बयां किया आपने .
मैं रचना जी के प्रयास में साथ हूँ , आज १ घंटे क्या ३ घंटे तक कोई विधुत उपकरण नहीं प्रयोग करूँगा और रोज कम से कम प्रयोग करने की कोशिस करूँगा .
दूसरों को रोशन राह दिखाने वालों का व्यक्तित्त्व ऐसा ही होता है... सरल लेकिन प्रभाव छोड़ जाने वाली कविता..
shikshaprad uttam rachna.
मुझे भी रंजना जी की बात सही लगी , बधाई
अच्छी लगी आपकी ये कविता ...उसके सहारे आपने बहुत कुछ कह दिया
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
waah !!! bahut hi achchi baat kahi aapne....sundar rachna...
wo jindagi bhi kya jindagi hai jo kisike kaam na aa sake...
बहुत ही सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद । रंजना की से सहमत हूं।
बहुत ही सुन्दर रचना के लिए धन्यवाद । रंजना की से सहमत हूं।
sach mein bahut masum niswarth bhav bayan karti sunder rachana badhai
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