मैं, मुझे पसंद नहीं मुझको बदलना होगा।
वक़्त तेज चलता है साथ ही चलना होगा।।
ना तो सीखा ना सिखाया गर्दिशों में झुक जाना,
आँख मूँद, सिर झुकाके अब तो गुज़रना होगा।।
एक चेहरा काफी नहीं गौर से सुन नासमझ,
चार-छः मुखौटे भी साथ में रखना होगा।।
अलग नज़र अलग सोच छोड़ दे तू फौरन,
भीड़ का हिस्सा बनके भीड़ में चलना होगा।।
बहुत हसीं दुनिया है सब तो यही कहते हैं,
बेवजह तू चीख रहा इसको बदलना होगा।।
प्रस्तुति - पंकज तिवारी
5 comments:
bahut badhiya gazal,khas kar aakhari do sher bahut pasand aaye.badhai
अच्छी भावनाये है…
पर दुनिया इतनी अच्छी भी नही है कि इसे बदलने की ज़रूरत समाप्त हो गयी है।
बहुत खूब कहा है...वाह..
आपको होली की शुभकामनाएं.
नीरज
VAH ..... BAHUT SHANDAR PRASTUTI HAI .... PANKAJ JI SHUBHKAMANAYEN.....
बहुत सुन्दर लिखा है आपने
प्रयास जारी रखिये गा
Post a Comment