आज मेरे पास एक मेल आया है जिसमें मेरी इस तरह से हौसला अफजाई की गयी मैंने ब्लाग हमेशा के लिए छोड़ने का छणिक विचार कर डाला । ( जोकी गलत है ) मैं आप सभी के सामने कुछ मुख्य बातें रखता हूँ । जिससे मैं इस हद तक आहत हुआ ।
पत्र की प्रमुख बातें-
१- आप जो ये कूड़ा लिखते हैं इसके लिए अपना अलग एक साइट का निर्माण कर लीजिये तो ज्यादा अच्छा होगा ।
२- आप हिन्दी साहित्य का बलात्कार क्यों कर रहें ?
२- आपका बिजनेस कैसा है टिप्पणियों का ?
४- ऐसे लोगों को तो लेखन से अलविदा ले लेनी चाहिए जिन्हें साहित्या का कुछ आता- पता न हो?
५- आप विचार करें तो बेहतर है।
मेल पढ़ते ही मैं कुछ सोचने की स्थिति में न रहा । बार-बार एक ही बात सामने घूमती की मैं साहितय् का बलात्कार कर रहा हूँ तो मुझे ये लेखन से सच ही हलविदा ले लेनी चाहिए । और जल्दी ही ये पोस्ट लिख डाली । अब यहां में उन मित्र की चर्चा नहीं कर सकता हूँ ।
ब्लाग पर आप सभी ने जिस तरह से मेरा उत्साह बढ़ाया हैं उसके लिये मैं आपका आभारी हूँ । पर आप ही बताइये कि क्या ऐसे भाषा शैली उचित है क्या ?
मैं खराब लिखता हूँ यह सही बात है पर क्या इस तरह से किसी की भावनाओं को बेरहमी तिरस्कृत करना उचित है ?
सर्वप्रथम समीर जी आपका धन्यवाद । ( ये टिप्पणी थी आपकी-अरे अरे, कहाँ चले भई?? भले मत टिपियाइये मगर जब कभी मन हो तो लिखते तो रहें. लिखना ज्यादा जरुरी है, इसे न रोकें. टिप्पणियाँ रोक दें अगर जी चाहे तो.
अगली पोस्ट का इन्तजार रहेगा-शुभकामनाऐं.)
आशीष जी ने कहा - (लिखने से क्या नाराजगी भाई .)
महेन्द्र मिश्रा जी ने कहा-(भाई नीशू जी
आपका यह सोचना सही नहीं कि आपको कोई पढ़ता नहीं कोई तिपयाता नहीं है . भाई सभी पढ़ते है . हाँ एक बात जरुर कहना चाहूँगा कि कई जन समयाभाव के कारण टीप नहीं दे पाते है . लिखने में अपनी निरंतरता बनाए रखे और सतत अभिव्यक्ति करते रहे . मेरी शुभकामना आपके साथ है .
महेन्द्र मिश्र
जबलपुर.)
सतीश भाई ने कहा - ( होली का खुमार है , नशा भांग का बरकरार है )
स्वपन जी की तरफ से ऐसा ही विचार आया । दिनेश जी ने सोचने की बात कही । समीर जी ने फिर लिखा (कर्म का नशा पालो, धर्म का नहीं,
लिखना कर्म है और टिपियाना धर्म.) । सुरभि ने कहा - तुम युवा हो ऐसे मत रूको । महक ने कहा- नीशू भई हम साथ है , पढ़ते है आपको।
अविनाश जी कहते हैं - जाने दो मत रोको।
प्रेमलता पांडेय जी कहती है - लिखना है ऐसे ही लिखते रहो ये सब आत्म सन्तुष्टी मिलती है वाह वाह में क्या रखा है ।
डी के शर्मा ' P D ' कहते हैं - लो अब मिल गयी इतनी सारी । अब ठीक है ना ।
संगीता पुरी- हम पढ़ते है तुमको ।
मैं हूँ आप लोगों के साथ । आपका प्यार और साथ मिल रहा है अच्छा लगा । पर मैं टिप्पणियों का भूखा नहीं यहां बात क्या ऐसे कमेंट देने चाहिए जिससे हम जैसे नव सिखिये लेखन से बिदा लेने की बात सोचें ।
आपका नीशू
16 comments:
नीशू जी मैं आपको कब से पढ़ रहा हूँ ये जरूर है की कभी कभी टिपिया नहीं पाता...आप में अच्छे लेखन की अपार संभावनाएं हैं...किसी के कहने पर जब आपने लिखना शुरू नहीं किया तो फिर किसी के कहने पर छोड़ने का विचार क्यूँ कर रहे हैं?" कुछ तो लोग कहेंगे...लोगों का काम है कहना...."..ये गीत गुनगुनाईये और लिखते रहिये...
नीरज
नीरज जी की बात से सहमति। मस्त रहो!
नीशू जी, दूसरों को हतोत्साहित करके और दुःख पहुंचाके आनंद लेने वाले दुष्ट लोग हर क्षेत्र में हैं और ब्लॉगजगत भी इसका अपवाद नहीं है. अगर इनसे डरकर हार मान लेते तो आज गांधी, गांधी नहीं होते, लिंकन लिंकन नहीं होते, आंबेडकर, आंबेडकर नहीं होते. इन टिप्पणियों को अपनी ताकत बनाएं और बेहतर लिखने का प्रयास करें, यही हमारा कर्तव्य होना चाहिए. कहते हैं न - निंदक नियरे राखिये...................
और फिर यहाँ जो लोग नामी ब्लोगर हैं वही कौन से प्रेमचंद, दिनकर या शेक्सपीयर हैं जो हमें हीन भावना हो. मस्ती से लिखते रहें. जब मेरे जैसे पिद्दी लेखक यहाँ टिके हुए हैं तो आप तो बहुत अच्छा लिखते हैं.
भाई नीशूजी, लिखते रहिए- लिखने से ही तो कलम की धार तेज़ होगी ना॥
इतनी छोटी छोटी बातों से विचलित होंगे तो लोग आपको कोई भी आकर गरिया जाएगा। आपको तो उलटॆ प्रमाणित करना चाहिए कि आप ने किसी की भैंस नहीं खोली है, जो दूसरे लठ्ठ उठाकर आपकी लानत मलानत कर जाएँ।
अपने आत्मविश्वास से न डिगें व लिखते रहें। अपने रस्ते चलते रहिए....
जीवन में ऐसे अनुभव आपको मजबूत बनाएँगे- बस यही सोच कर परवाह छोड़िए और आगे बढ़िए।
अरे नीशू भाई , क्यो एक की गलती पर सब का दिल तोड कर जा रहे हो, ओर जिस ने भी मेल लिखा हैवो तो चाहता ही है आप को भगाना, चलो फ़िर से लिखो.
टंकी पर तो मेरे ख्याल से विवेक बाबु बेठे है कई दिनो से, इस लिये वहा जगह खाली नही, इस लिये अभी लगे रहो लिखने पर, शेर बनो ओर हिम्मत नही हारते, मै तो ज्यादा तर पढता हुं.
धन्यवाद
kavita ji ,raj ji aur uppar likhee sabhi tippaniyon par dhyan den -apne aatm vishwas se na hilen...
yah ek manch hai seekhne ka seekhane ka..
kayee bar aisa hota hai..padh lete hain comment bhi kartey kabhi rah bhi jaata hai..is liye comment ke numbers se apne likhey ka ankalan karna galat hai.likhtey raheeye..yahi ek jareeye apni baat sab tak pahunchane ka jaise ab pahunchaayee hai.
dhnywaad.
आपके सामने है
ये दुनिया का कटु सत्य !
मेरा ब्लोग भी देख लीजिये ..
ऐसी ही अपमानजनक बातेँ बेबात सुननी पड रहीँ हैँ :-((((
क्या करेँ ?
और हाँ,
होली की शुभकामनाएँ सभी को -
- लावण्या
काहे परेशान हो जी ? अगर आप इन सवालो को ्तवज्जो दे रहे है तो मेरे कुछ सवालो के जवाब भी दे ही दीजीये
क्या आप इस जहा मे दूसरो से पूछ कर जी रहे है ?
क्या आप कुछ खाने से पहले पूरे मोहल्ले की राय लेते है ?
क्या आप कुछ पढने से पहले लोगो से राय लेते है ?
क्या आप बिना राय लिये कुछ नही करते ?
तो फ़िर यहा काहे इस सडी दो धेले की राय को इत्ता मान दे रहे है तुरंत डस्ट विन का प्रयोग करे वो बना इसीलिये है . हमे भी पिछले दिनो से काफ़ी इस प्रकार की राय मिल; रही है . पहले भी मिलती रही है . पर अब हम जानते है ( वर्ड प्रेस की मेहरबानी से) कि हमारे कुछ दोस्त हम से मौज ले रहे है सो हम इन्हे डस्ट विन के हवाले कर देते है
ये आपका स्थान है आपकी मर्जी जो चाहे करे जिसने आपको राय दी है उस उल्लू के पट्ठे को क्या आपने विवेचना के लिये आमंत्राण दिया था ? नही ना तो फ़िकर ना करे कुछ लोग खुद कुछ नही करते और किसी और को कुछ करते देख जल कर खाक होने लगते है .:)
ध्यान मत दो,बस लिखते रहो। अच्छा लिखते है आप,आप्को किसी के सर्टिफ़िकेट की ज़रूरत भी नही है।
इस तरह के पत्र और टिप्पणीयों नज़रअन्दाज़ कीजिये और लिखते चलिये।
आलोचना सही है मगर किसी को इस तरह हतोत्साहित करना, नीचा दिखाना-कोई कुंठाग्रसित व्यक्ति ही कर सकता है-शायद न लिख पाने की कुंठा हो या कोई अन्य.
मत ध्यान दो इस तरह की बातों को.
कोई सिखाये, गल्ति बताये-उसका स्वागत करो और इनको इग्नोर-फाईनल फार्मूला!!
टिपियाने वाले ने अपना कर्म किया आप अपना कीजिए। जब जितना मन करे लिखिए। जिसे पसन्द आएगा पढ़ेगा, जिसका मन टिपियाने का होगा टिपियाएगा। यदि टिप्पणी मूर्खता पूर्ण हो, द्वेषपूर्ण हो और अन्य को पढ़वाने लायक नहीं हो तो उसे यहाँ जगह मत दीजिए। बस।
घुघूती बासूती
घुघूती जी की बात से सहमत है । बस आप लिखते रहिये ।
नीशू जी।
यदि किसी ने कहा कि तुम्हारा लेखन खराब है और अपने लिखना ही बंद कर दिया, इससे क्या लेखन सुधर जाएगा? कल वही आकर बोलेगा कि तुम मुझे अच्छे नहीं लगते तो क्या बाहर निकलना छोड़ दोगे।
एक सर्वविदित उदाहरण देता हूं, सचिन को पिछले साल कितने ताने सुनने पड़े पर उसने मुंह से कुछ न कह कर अपने खेल से सबको जवाब दिया, आज फिर ताना मारने वाले उसकी जय-जयकार कर रहे हैं।
तो मेरा सुझाव तो यही है कि अपने कर्म से मुंह तोड़ जवाब दो। हर अच्छे काम में रुकावटें आती हैं। हर बड़े लेखक, वैज्ञानिक, कलाकार सबकोकभी न कभी आलोचना सहनी पड़ी है, तो हम क्या चीज हैं।
Are bhai, koi kuchh bhi kahe kahne dijiye.. ab kya kijiyega?
chaliye aapke agle post ka intjar karte hain.. :)
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