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Wednesday, March 25, 2009

.वो मुस्कुराती रही दूर से और मैं उसे देखकर चलता रहा

जिंदगी के साथ बढ़ते कदमों ने कितना सफर तय किया कुछ याद नहीं......गांव से शहर में हम हंसते , गाते गुनगुनाते दिल को बहलाते दिल्ली आ धमके..... सफर शुरू हुआ पर अंत का पता न है और न होगा ...... घर तो रहा नही इसलिए राहगीर या बंजरों की कल्पना कभी कभी जेहन में उतर आती है....कितने साथी बने और कितने राहों में छुट गये , बिखर गये यादों में ......भूलता गया । कभी कोई अंजाना चेहरा अपना सा लगता है .....कुछ इसे प्यार कहते हैं शायद और कुछ आकर्षण । मेरा प्रेम मोह में हमेशा से विश्वास न रहा.....इसी वजह से कोई खास फलसफां न रहा मेरा । आकर्षण कहीं ज्यादा आकर्षित करता रहा मुझे , जिसकी कोई बंदिशे नहीं .....

समय की रफ्तार से बढ़ना था और बढ़ता रहा कोई हमसफर की तलाश न थी और न है ही...... पर इस आकर्षण का शिकार होना बहुत ही सुखद और दुखद दोनों ही होता है ऐसा कुछ अनुभव कहता है .....पैसे से ज्यादा जीवन में अभी कुछ भी खास न लगा पर अचानक यह भाव तब गये जब इन सब बातों से परे एक अजनबी नूर का दीदार हो गया .....सुबह शाम होती थी पहले भी पर अब बदली बदली सी लगती है ......।

मालिक के बाद मैंने मकान मालिक को ही जाना, उन भाई की वजह से दिल्ली, नोएडा का सफर होता रहा आये दिन....कमरेबदलना हमारी नयी परपंरा हो गयी है । नये कमरे पर आगमन हुआ ,काफी कुछ बदल जाता है। लोग अजीब सी नजर से देखते हैं नये चहेरे को( मुहल्ले वाले) ।
यह नजर शक की होती है या फिर नयेपन की मालूम नहीं......उन नजरों में एक नजर अपनी सी लगी जिसने मुझे अपना समझा ( जिसे मैं अपना समझा)....... हम एक दूसरे से दूर थे या पास यह न पता पर दूरी का एहसास नहीं लगता जब भी काम से फुरसत मिलती तो नयन मट्का जरूर हो ही जाता.....अब इसे संयोग कहें या फिर किस्मत बिना सोचे सब कुछ होता रहा .....वह मुझे देखकर मुस्कराती और मैं भी उसे देख .....कभी कोई बात न करता चोरीछिपे एक दूसरे को देखते यह हम भी जानते और वो भी जानती पर अच्छा लगता यूँ ही ....ईदिन बीतते गये , कुछ दिन में महीने गुजर गये और हम दोनों अभी भी वैसे ही थे , कभी सामना न हुआ सामने से वरना????????

अब फिर से मालिक की कृपा और कमरा छोड़ पलायन कर दिये हम वो नजर दूर तक नजर आती रही .....चेहरे पर मुस्कान लिये हुए और हम भी मुस्कराते हुए चलते रहे......ये अंजाना रिश्ता बहुत ही शुकून देता हैं मुझे जब भी याद आता है.....हंसता हूँ खुद को सोच के......

7 comments:

अनिल कान्त said...

इश्क भी किस्तों में किया है हमने
इस दिल को जिया है हमने ....................

सुशील छौक्कर said...

अनजाने रिश्ते का सूकून पढकर अच्छा लगा।

Alpana Verma said...

bahut khuub dastan sunayee aap ne!

aksar hota hai..akarshan aur ishq mein kuchh steps ka hi antar hota hai.aap pahle step par pahunch hi gaye!

राज भाटिय़ा said...

अरे क्या प्यार इसे ही कहते है ? पता नही .... चलिये अब अगली खिडकी फ़िर से तेयार मिलेगी...
बहुत सुंदर लिखा आप ने यह लेख.
धन्यवाद

Anonymous said...

मुझे भी पीछे मुड़कर देखना पड़ा आज

श्यामल सुमन said...

कोशिशें जारी रहे। कहते हैं कि-

सच कहूँ मैंने भी की न जाने कतनी कोशिशें।
लौटकर पर वक्त आया ही नहीं गुजरा हुआ।।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

आलोक सिंह said...

फुरसत निकाल के नयन मट्का करते रहिये कभी न कभी सफलता जरुर मिलेगी . मकान तो बदलते रहिये हमने भी खूब बदले है ६ साल में १७ मकान बदल डाले थे हमने गाजियाबाद में .