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Saturday, March 21, 2009

आगे बढ‌़े कदम......[एक कविता]

एक बात जान लो

कल को पहचान लो

वक्त उसी की मुट्ठी में है

जो ठान लो

उसे अंजाम दो

नाहि झुको नाहि रुको

संयम सदा बनाये रखो

बाधायें चाहे जितनी आयें

उन्हे लांघ बढ़ चलो

वक्त किसी का सगा नहीं

उसे आगे बढ़ते जाना है

जो संग उसके चल लिया

निश्चित विजय उसे पाना है

तो सोच क्या रहा है तू

आगे बढ़ा अपने कदम

नव क्रांती कि ज्योत जलाने

बन मील का पत्थर ॰॰॰॰॰॰॰॰




प्रस्तुति-कवि विनोद बिस्सा

2 comments:

अखिलेश शुक्ल said...

आपने बिलकुल ठीक लिखा है जो वक्त को पहचान लेता है वही सही मायने में सफल हो पाता है।
अखिलेश शुक्ल्

आलोक सिंह said...

सही कहा "वक्त किसी का सगा नहीं".