जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Tuesday, March 17, 2009

मुख्तार माई " एक संघर्ष की जीवंत कहानी " - ऐसी साहसिक माहिला का अविश्वसनीय प्रयास " महिलाओं के सामने प्रत्यक्ष उदाहर

सामूहिक बलात्कार के ख़िलाफ़ पूरे जीवट के साथ खड़ी होने वाली पाकिस्तानी महिला अधिकार कार्यकर्ता मुख्तार माई ने विवाह कर लिया । मुख़्तार माई के साथ उनके ही गाँव के चार लोगों ने 2002 में उनके 12 साल के भाई पर व्याभिचार के आरोप लगने के बाद सज़ा के तौर पर बलात्कार किया था ।तब उन्होंने अपने ऊपर लगने वाले सभी लांछनों को नज़रअंदाज़ करते हुए बहुत हिम्मत दिखाते हुए बलात्कारियों को सज़ा दिलाने की लड़ाई लड़ी ।सामूहिक बलात्कार के संबंध में छह लोगों को ग़िरफ़्तार कर मौत की सज़ा दी गई ।अभियुक्तों ने फ़ैसले के ख़िलाफ़ अपील की है और कानूनी प्रक्रिया जारी है ।


बलात्कार के बाद उन्होंने एक आत्मकथा लिखी जो ख़ासी लोकप्रिय हुई । इसके अलावा उन्होंने पाकिस्तान में एक स्कूल और संकटग्रस्त महिलाओं के कई सहायता केंद्र खोले हैं ।मुख़्तार माई को ग्राम पंचायत के कथित आदेश पर हुए अपने बलात्कार के विरोध में मुखर होने पर व्यापक रूप से अंतरराष्ट्रीय समर्थन मिला ।फिर 2005 में उन्हें वाशिंगटन में हुए एक समारोह में ग्लैमर पत्रिका ने 'वोमेन ऑफ़ द ईयर' का सम्मान प्रदान किया ।मुख़्तार माई का मामला ख़ासतौर पर सामंती और ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के साथ भयानक व्यवहार किए जाने का एक उदाहरण है।


मुख्तार माई ने जिस तरह से "बढ़ती हिंसा के बावजूद अदम्य साहस और सकारात्मकता" का परिचय दिया वह सराहनीय है । एक उदाहरण है मुख्तार माई सभी के लिए । ऐसी महिलाएं होनी चाहिए जो अपने विरूध हो रहें अत्याचार का खुल कर विरोध कर सके न जुल्म को सहकर चुप्पी मार लें ।

3 comments:

रंजना said...

nisandeh prashanshneey aur anukarneey hai mukhtaar mai ka vyktitva aur unki himmat.

आलोक सिंह said...

मुख्तार माई को मेरा सलाम , ऐसी हिम्मत और जज्बा सब में होना चाहिए .

Malaya said...

जिन जंगली दरिन्दों ने यह कुकृत्य किया उन्हें वहाँ के समाज ने जिन्दा फूँक क्यों नहीं दिया?

कट्टर इस्लामी समाज आज भी हजारो साल पहले की रीति से चल रहा है। जड़वत्‍... मुख्तारन बाई को सलाम।