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Saturday, March 7, 2009

यह पोस्ट केवल महिलाओ के लिए है ........................नारी आखिर क्या ? विश्व महिला दिवस से पूर्व चर्चा ।


मीडिया व्यूह ( तब इस ब्लाग की कल्पना मात्र थी ) द्वारा शैलेश भारतवासी ( हिन्द युग्म) और मनीष वंदेमातरम ( हिन्दी कवि ) के सहयोग से तैयार " प्रश्नचिंह" नामक प्रश्नावली द्वारा सर्वे किया गया था ( यूइंग क्रिश्चियन कालेज, इलाहाबाद ) । दस प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार की गयी थी । महिलाओं के सरोकार से समाज पर पड़ने वाले प्रभाव को मुख्य मुद्दा बनाया गया था। एक महत्तवपूर्ण प्रश्न जिसकी चर्चा आज यहां आपके सामने कर रहा हूँ ।

प्रश्न- क्या महिलाएं ही महिलाओं की दुश्मन हैं ? समाज में बहुओं को जलाने और प्रताड़ित करने की खबरें आयेदिन आती रहती हैं, इसमें सास, ननद इत्यादि की महत्तवपूर्ण भूमिका होती है दहेज को बढ़ाने में इन सबकाअहम योगदान होता है इस पर आप क्या सोचती हैं? और इसके क्या कारण होते हैं? इससे बचाव क्या है?

सर्वे का परिणाम काफी सकारात्मक रहा । २०० लड़कियां जो स्तानक स्तर की शिक्षा ले रही थी। इसमें से लगभग ५० लड़कियों ने लिखित और बाकी ने मौखिक उत्तर दिये।
सभी ने माना कि इस तरह की घटनाओं में सास ननद का अहम योगदान होता है इसे इनकार नहीं किया जा सकता है । यह दुखद भी है , नारी ही नारी की दुश्मन बन जाती है । दहेज पर- सास और ननद की अनेक इच्छाएं दहेज को बढ़ावा देती हैं, बहुत कुछ पाने की चाहत होती है शादी ब्याह में। साथ ही दहेज को सामाजिक स्तर के रूप में भी देखती हैं । जिससे दहेज प्रथा को बाढ़ावा मिलता है ।

बचाव पर कुछ खास परिणाम न आसका । पर खुद को इस तरह की बुराईयों से दूर रखने का विश्वास दिलाया ।और अपना विरोध जाहिर किया ।आप सभी की क्या सोच है इस मुद्दे पर गौर करें और बतायें?

5 comments:

योगेश समदर्शी said...

भईया जी पोस्ट तो महिलाओ के लिये थी पर पढ ली.. और इतना भी जरूर कहेंगे कि सर्वे के लिये उठाया गया सवाल बहुत अच्च्छा है... पर पुरुषों से इस तरह क दोहरा बरताव सही नही... ह ह हा ....

शोभा said...

आपने जो सवाल उठाया उसमें पारिवारिक स्थिति उभर कर आई है। हाँ मैं भी मानती हूँ कि परिवारों में महिलाएँ दूसरी महिलाओं का पक्ष नहीं लेती किन्तु नारी का शोषण करने वाला पुरूष ही है। घरेलु हिंसा के अलावा भी नारी का शोषण होता है। उसको वासना पूर्ति का साधन समझा जाता है। छोटी-छोटी मासूम बच्चियों के साथ बलात्कार करने वाला पुरूष ही होता है। उसके अधिकारों का हनन कर उसे पैर की झूती समझने वाला भी पुरूष ही होता है। इसलिए सिक्के के दूसरे पहलू पर भी विचार करें।

शेफाली पाण्डे said...

वैसे तो पुरुष स्त्री पर बल प्रयोग का कोई मौका नहीं छोड़ता ..सिर्फ इसी मुद्दे पर चुप्पी क्यूँ साध लेता है ?कहीं न कहीं उसकी सहमति अवश्य होती है

संगीता पुरी said...

घरेलू मामलों में जो हिंसा होती है ... उसमें से भी कुछ ही मामलों में महिलाएं महिलाओं की दुश्‍मन होती हैं ....पर ऐसी स्थिति हजार महिलाओं में से एकाध को ही झेलनी पडती है ... उससे अधिक मामलों में महिलाएं सास और ननद की प्‍यारी भी होती हैं ... मुख्‍य समस्‍या महिलाओं क साथ बाहरी जगहों पर शोषण की है ... जिसमें अधिकांशत: पुरूषों का हाथ होता है ... और इसके कारण महिलाओं के लिए कोई भी स्‍थान सुरक्षित नहीं दिखाई पडता।

निशाचर said...

दरअसल नारी विमर्श महिलाओं के विरुद्ध महिलाओं द्वारा हिंसा और महिलाओं का पुरुषों द्वारा शोषण और हिंसा इन दो विषयों में घालमेल कर देने के कारण उलझ गया है जबकि इन दोनों को अलग -अलग रखकर चर्चा करने की आवश्यकता है.