जन संदेश
Tuesday, March 31, 2009
उल्टा- पुलटा .........( यहां पर सब १०० प्रतिशत खरा है कोई फूल और कांटा न बनेगा )
१-
मालिक; (ड्राइवरसे) अरे भई; गाड़ी जरा धीरे चलाओ। इतनी तेज रफ्तार देखकर डर लग रहा है।
ड्राइवर ; डर तो मुझे भी लग रहा है । पर क्या करूँ गाडी के ब्रेक फेल हो गये हैं।
२-
मीनाः डाक्टर साहब। मुझे घुडसवारी का शौक है, इस कारण मेरे पति मुझे पागल समझते है। क्या घुडसवारी पागलपन है?
डाक्टरः बिलकुल नहीं। ऐसा कहने वाला स्वयं पागल होगा।
मीनाः सच , डाक्टर साहब। चलिए, अब आप घोडा बनिये।
३-
एक कंजूसः(मेहमान से)कहिए जनाब क्या लेगें, ठण्डा या गरम?
मेहमानः (नौकर से) राजू। पहले ठंडा पानी ले आओ फिर गरम पानी ले आना।
४-
साधूः बेटा, बाबा को कुछ दक्षिणा दो। प्रभु की लीला देखना, तुम पे उनकी अपार कृपा होगी।
रमेशः माफ करें बाबा। एक लीला(पत्नी) से तो पहले ही परेशान हूँ।
५-
शिक्षकः (छात्रों से) बच्चों, बर्फ का प्रयोग करते हुए वाक्य बनाओ।
छात्रः- पानी बहुत ठंडा है।
शिक्षकः इस वाक्य में बर्फ शब्द कहां पर है?
छात्रः सर । वह तो पिघल गयी है , तो देखेगी कैसे?
६-
पायलट की ट्रेनिंग के लिए इंटरव्यू के दौरान अधिकारी ने रोहित से पूछाः-
" अगर तुम्हारा विमान आकाश में उड़ने के दौरान अचानक रूक जाए तो तुम क्या करोगे?"
रोहितः करना क्या है सर, सभी यात्रियों को उतार कर धक्के लगवा दूगां।
७-
मां ने अपने बेटे से पूछा, तुमने पापा को बताया, कि तुम्हें भाषण -कला में पहला ईनाम मिला है।
" हां मम्मी। बताया"
" तो वो क्या बोले?"
" कहने लगे कि तुम में अपनी मां के गुण पैदा होते जारहे हैं"
८-
एक पहलवान ने वकील से पूछा , " आप मेरा केस लड़ सकते है?"
,"केस तो लड़ सकता हूँ, लेकिन फीस के लिए तुमसे कौन लडेगा?"
दो औरत के झगड़े का मजा ......पूरे मोहल्ले वाले लें । आप भी लीजिए
बात बहुत ही गौर करने की है जो मैंने देखा - एक परिवार में सभी खुश और आराम से रह रहें हैं । एक बच्चे ने अपनी मां से कह दिया कि चाची में मुझे गाली दी और अपने घर आने से मना किया । अब बच्चे की ही बात को सच मानते हुए । तलवारें बाहर झांकने लगी पहले तो कुछ दबी आवाज ही आती रही फिर धीरे धीरे आवाज की प्रतियोगिता शुरू हुई । एक दूसरे के सारी करतूतों का चिट्ठा एक ही पल में मोहल्ले वालों के सामने खोल दिया । कुछ देर बाद सब शांत होता है । फिर एक तरफ से खूब तेजी से रेडियों को पूरी तान में बजाया जाता है , तो दूसरी ओर एक महिला अपना गुस्सा बच्चे को पीट कर निकालती है । नजरे तिरछी हुई है । देखना पर नजर बचा के ।पता न चले कुछ ऐसे ।
पूरे मोहल्ले वाले भारजे पर लटक कर , झांक झाक कर मजा ले तमाशा देख रहे हैं । । कुछ समय तो हंसी खुशी बीत जाता है फिर सब शांत । सभी अपने घरों में कैद हो जाते हैं।
बिना बातों के लड़ाई और झगड़े इस तरह कई बार सामने आ जाते हैं जो कि कुछ ही वैमन्स्य की वजह से होते है । बात बहुत ही छोटी होती है या फिर कुछ भी नहीं होती । किसी पुरानी बात को यहां से पूरा कर लेते हैं । कुछ ऐसा है हमारा मोहल्ला और यहां के लोग कहने को पढ़े लिखे हैं पर योग्यता आपके सामने ही है । और क्या कहें
Sunday, March 29, 2009
अगर आदमी के पूँछ होती तो..................[हास्य]
कल्पना करें की आपके पूँछ हो तो क्या होता? चलिए जनाब हम आप को ले चलते हैं पूँछों की काल्पनिक दुनिया में। जब हम किसी व्यक्ति से मिलते है तब हम हाथ मिलाते हैं पर आप आराम से अपनी पूँछ इधर-उधर हिलाकर सामने वाले की पूँछ से अपनी पूँछ मिलाकर खुशी का इजहार करने के लिए एक दूसरे से पूँछें ऐठ लेते। हम अपनी पूँछ के लिए अलग से स्टाइलिस कपडें खरीदते और पूँछ को अलग-२ तरह से सजाते तथा पूँछों के भी अलग-२ स्टाइल प्रचलित होते। जब आप सिनेना घर में फिल्म देख रहे होते और कोई हास्य सीन आता तो आप ताली के लिए हाथ की जगह पूँछसे थपथपाहट करते। हमारी पूँछ की आवश्कता बहुत बढ जाती कि कोई वस्तु, कोई समान आसानी से उठाया जाता। पूँछों के देखभाल के लिए टेल केयर सेंटर तथा टेल स्पेसलिस्ट होते साथ ही साथ टेल डिजाइनर होते।
कितना अच्छा होता अगर पूँछ होती लोग अपनी जुल्फों को पूँछों से हटाते और पूँछों से अगल-बगल बैठे लोगों को छेंडते और परेशान करते ।
काश ये सच होता।
बहन आज ब्लाग पर आकर खुश है ........[एक तस्वीर]

रक्षाबंधन पर मैं और रिंकी
मेरी एक बहन जब कभी उससे बात होती तो वह मेरा हाल पूछती मैं सब कुछ बताता साथ ही अपनी ब्लागिंग की चर्चा करता । पर वह ब्लागिंग को सुनते ही चिढ़ जाती कहती रहने दो अपने पास रखो । पता नहीं क्या ऊल-जलूल करते हो । आंख खराब हो जायेगी कंम्प्यूटर कर सामने बैठे -बैठे। आज उससे बात हुई मैंने कहा आज तुम्हारी पोस्ट होगी मेरे ब्लाग पर । वह खुश हो गयी। कुछ पुरानी तस्वीर पोस्ट कर रहा हूँ ।
बंदर जब बन जाये राजा ..........तब ये हंसगुल्ला
हंसगुल्ला-
जंगल में राजा के चुनाव के लिए मत होता है । इस बार बंदर जंगल का राजा बनता है । बंदर बहुत खुश हो जाता है यह पद पाकर । एक दिन एक बकरी के मेमने को शेर उठा ले जाता है । बकरी भागी-भागी बंदर के पास आती है । और सारा हाल बताती है ।
बंदर ( जंगल का राजा) कहता है कहां है शेर ? बकरी कहती है - अपनी मांद की तरफ गया है ? बदर और बकरी चल देते हैं मांद की तरफ।
बंदर शेर की मांद के सामने पहुंचते ही तनकर देखता है मांद की ओर फिर पेड़ पर चढ़कर अपनी कलाकारी करने लगता है ......कभी इस डाल तो कभी उस डाल कूदता फंदता है काफी देर तक । बकरी देखती रहती है ।जब कुछ समझ नहीं आता ।
फिर बकरी कहती है - महराज ऐसे में तो शेर मेरे मेमने को खा जायेगा । आप के इस उछल कूद से क्या फायदा ?
बंदर कहता है - सुन बकरी तेरा मेमना बचे या शेर उसको खा जाये मैं जो कर सकता हूँ वो तो कर रहा हूँ ।
Saturday, March 28, 2009
रचना जी , बिजली अपने आप गायब हो गयी ....हमें तो कुछ न करना पड़ा ...एक घण्टे के बजाय ५ घंटे ये तो धोखा है न ?

बेमौसम बरसात से मौसम सुहाना बन पड़ा । धरती प्रहर के उत्सव के लिए हम सभी संकल्पित हो चुके थे । कि आज का प्रयास सफल हो सके ।और हुआ भी । बिना प्रयास के । शाम से बदलते मौसम के मिजाज से तेज हवाएं और बारिश की छीटा कसी के बाद अचानक लाइट के चले जाने से हाल बेहाल । 8 बजे से लाइट गयी तो वापस आने के लिए तारे तक गिनने को न दिखे । मच्छरों ने जीना हराम कर रखा । सोचा कि सोया जाय तो नींद काफूर हो गयी आंखों से । लाइट होती तो गुड नाइट बनाने के लिए आलआऊट ही जला लेते पर काश ही पर आकर रूक गये ।
हमें करने के लिए कुछ न था सब कुछ अपने आप ही हो गया । कहां हम सभी एक घंटे बिजली बचाने का रोना रो रहे थे । यहां तो बिजली चपत हुई कि आने का नाम ही नहीं ।आखिर अब जाकर ५ घंटे के बाद हम बिजली पाकर खुश हुए । कितना निर्भर हो गया है जीवन और इस के लिए बिजली । आखिरकार हमभागी देने में सफल रहे । कुछ ऐसे बीत गया ये पल।
प्यार का इजहार -[ एक कहानी] भाग- एक
थोड़ी ही देर बाद अभिषेक ने प्रिया के नं पर फोन मिला दिया ...... कई बार बेल जाने के बाद प्रिया ने कहा अब क्या है? अभिषेक बोला -अब कब बात होगी ?.......प्रिया ने कुछ जवाब न दिया कहा जब होनी होगी हो जायेगी ......और प्लीज मैसेज न करना । फोन कट गया .... अभिषेक को प्रिया का यह बर्ताव बिल्कुल भी अच्छा न लगा । ( वह तो पहली बार में सारी बातें करना चाहता था प्रिया से बात करके उसे प्यार का आभाष हुआ था । इसी विश्वास से उसने दुबारा फोन करने का साहस किया )। अभिषेक पल भर में ही दुखी भाव से अपने काम में लगा । बिना किसी उम्मीद के ।
अभिषेक इलाहाबाद में रहकर पढ़ाई कर रहा था । अभी तक उसके जीवन में पढ़ाई का ही साथ रहा किसी लड़की का इस तरह से बात करना उसके लिए नयापन था , आकर्षक था , प्रेम था , । जबकि शहर और यूनिवर्सिटी की दुनिया से बिल्कुल अलग रहना पसंदगी थी अभिषेक की । काम से काम । कुल मिलाकर साधारणपन था । किसी दिखावे में रहना न भाता उसे ........इस फोन के आने से कुछ कुछ दिमागी हलचल से परेशान हुआ था अभिषेक । इस वर्ष बी.ए की पढ़ायी खत्म करने के बाद आगे के भविष्य के बीच प्रिया की बातें हमेशा उसे परेशान करती । फोन नम्बर होते हुए भी वह बात नहीं कर सकता था । केवल और केवल इंतजार कर रहा था प्रिया के फोन का । ( क्या प्रिया भी ऐसा ही सोचती होगी जैसा मैं सोचता हूँ उसके बारे में ? क्या वह परेशान नहीं होती होगी ) । धीरे - धीरे समय बढ़ता गया एक सप्ताह का समय गुजर चुका था अभिषेक की परेशानी बढ़ती ही जा रही थी । कोई फोन जो नहीं आ रहा था प्रिया का .
अचानक प्रिया का फोन आता है एक दिन । प्रिया- हैलो कैसे हो ? अभिषेक - अच्छा नहीं हूँ ? प्रिया - क्यों ? क्या हो गया ? । अभिषेक- कुछ भी नहीं ? अभिषेक ने पूछा - तुम कैसी हो ? और इतने दिन फोन क्यों न किया ? प्रिया- मैं ठीक हूँ ......और फोन किया नहीं तो बात कैसे हो रही है और हंसने लगी ( अभिषेक को यह हंसी जलन भरी लगी पर कुछ न बोला ) । अभिषेक - हां सही कह रही हो किया तो है ही । फिर से प्रिया - तुमने मैसेज क्यों न किया ? अभिषेक - तुमने ही तो मना किया था । भुल गयी क्या ? प्रिया - मैंने ? अभिषेक - हां तुमने ही । प्रिया - ओके । ( अभिषेक अपने दिल की बात कहना चाहता था पर कैसे कहे , शर्म और झिझक ने उसको जकड़े रखा था ) । अभिषेक- और तुम बताओ ? प्रिया - क्या बताऊ ? अभिषेक- कुछ भी ? प्रिया - नहीं अब रखती हूँ । अभिषेक - क्यों ? प्रिया- मां आ गयी हैं , बाय । फोन रखकर अभिषेक का चेहरा उतरा हुआ और खुद से गुस्सा । कि अपने प्यार को बताये कैसे ? क्या करे वो ? कहीं प्रिया को बुरा लगा तो यह सब बातें भी बंद हो जायेंगी जो कभी कभी हो जाती है ।
अभिषेक इसी दौरान अपने गांव चला गया । मां ने बुलाया था होली पर । घर जाने पर वह हमेशा खुश हुआ करता था पर इस बार का उत्साह गायब था । होली बीत जाने पर कैसे जल्दी वहां से वापस आये इलाहाबाद यही बात सोचता .....मां ने अभिषेक से पूछा भी था कि क्यों खामोश और ये चेहरा उतरा उतरा है ? कोई परेशानी याफिर तबियत नहीं ठीक है ? अभिषेक ने सर हिला दिया - सब ठीक है । पर मन मन ही दुखी और व्याथित था । कुछ समझ न आ रहा था उसे । जबकि मां से अभी तक अभिषेक ने सारी बातें कहता था पर प्रिया की बात को बताने से हिचक रहा था । मां क्या सोचेगी ? कहीं मां को खराब न लगे ? ऐसी कई बातें आती रही अभिषेक के जेहन में ।
Friday, March 27, 2009
लैम्पपोस्ट ..................[एक कविता]
वो लैम्पपोस्ट,
कितना बेबस लगता है ,
आते-जाते लोगों को ,
चुपचाप देखता है ,
अपनी रोशनी से
करता है रोशन शामों शाहर को,
और
खुद अंधेरा सहता है,
कपकपाती ठंड,
सर्द हवा,
कोहरे की धुंध ,
कुत्ते की भौक,
सोया हुआ इंसान ,
यही साथी हैं उसके,
शांत , निश्चल
पर आत्मविश्वास से ,
भरा हुआ,
खड़ा रहता है वह,
हमेशा,
इंसान की राहों को ,
रोशन करने ,
खुद को जलाकर,
कितना निःस्वार्थ,
निश्कपट,
निरछल
भाव से,
करता है अपना
समर्पण ,
दूसरों के लिए ।।
अमेरिकी पाक और अफगान नीति के विरूध चरमपंथी का पाकिस्तान पर आत्मघाती हमला , ५० मरे
आतंकवाद का बढ़ता यह फैलाव किसी सरहद और सीमा की बंदिशे तोड़ चुका है । अब इन हमलों को अमेरिका या फिर रूस के साथ मध्य एशिया के देश किस तरह से नीति बना कर इस आतंक का जवाब दे पायेगें । साथ ही ओबामा की यह नीति कितनी कारगर होगी आने वाले दिन बतायेंगें । अमेरिका के ४००० सैनिक अफगानिस्तान भेजें जायेगें । जबकि पहले से १७००० अमेरिकी सेना तैनात है । अब तालिबान का विरोध बम हमले से ही किया जायेगा । इसका निशाना अभी पाक और अफगान ही होगा । पता नहीं कितनों को जान देना होगा ?
बार बार टूटता जुड़ता रहा ये दिल
मोबाइल से बना हुआ विश्वास मोबाइल से ही टूट जाता है .......देखने की ख्वाहिश .......मिलने की पयमाइश दिल के समंदर में हिलोरे लेता हुआ दफ्न हो जाता है .......हवा का बहाव अपनी दिशा के विपरीत होता देख क्या दुख नहीं होता.....इन सब बातों से पर हटकर ये जताने और दिखाने की कोशिश लिये की गम की एक शिकन तक आसपास नही है अपने आपने बहुत ही बड़ी और विकट चुनौती है ......साथ चलने का वादा....दी हुई कसमें टूटती और बिखरती है आखों के सामने तो मन मसोस कर दर्द की वेदना को सहना असहनीय हो जाता है । कुछ कम ही मिलते थे तो भी खुशी की लहर पैरों को गुदगुदाती हुई प्रेम की पराकाष्ठा का जो अनमोल अनुभव कराती.... वह यादों में बदल जाये तो जीवन का अस्तित्व भी खतरे में जान पड़ता है ।।..
दूरियों से नजदीकियां बनती है तो मन प्रसन्नता की असीम ऊंचाई पर जा बसता है और जब इसके उलटे नजदीकियां दूर जाती है तो आपने आप को संतुलित करना क्यों मुशिकल हो जाता है ? विरह वेदना का स्वरूप इतना कष्ट दायक जान पड़ता है कि जिसकी कोई परिधि और कोई सीमा नहीं ।
इस व्यथा का शायद कोई उपचार नहीं हो ...इंसान की फितरत और इंसान की फितरत के आगे इंसान का झुकना किसी को आराम देता है तो किसी को खुद गुनहगार साबित करता है । एक ही परिदृश्य में अलग अलग मायने नजरों के सामने आते हैं ।।खुद को सोचते हुए कुछ नहीं पाते सिवाय बेबसी के और आखिर तक उम्मीद का दामन पकड़े रहते हैं जब कि कोई आशा और धारा का रूख हमारी ओर नही है । परन्तु इस सब गहमो गहमी के बीच अपने को दिलासा देने का यही बेहतर और सही तरीका है। किसी को बुरा और गलत साबित कर कुछ न हासिल हुआ और नहीं होने वाला ..और. वह गलत और गुनहगार हो हीनहीं सकता जो इतना हर दिल अजीज हो , प्यारा हो ।
Thursday, March 26, 2009
संस्कार या फिर परवारिश में आ रही है गिरावट
भारतीय समाज की अपनी अलग विशेषताहै ,जिसके कारण यह अपने आप में विश्व के हर समाज से भिन्न है। मैंने कुछ दिनों पहले पहले धर्म और आस्था के विषय को चुना था । परआज समाज के महत्व को सामने रखने की इच्छा है। बात युवा पीढ़ी से करें तो हम आज विश्व के सबसे युवा देशमें गिने जाते हैं। और हमारे समाज के बागडोर अनुभव और समझदार बुजुर्गों के हाथ में होती है जो कि सही सलाह और सही मार्गदर्शन कराते हैं किसी भी पहलू पर ।।
जब हमारे यहां कोई बच्चा होता है तो उत्सव का माहौल होता है खुशियां मनायी जाती है । बच्चे को बचपन से लेकर युवा अवस्था तक पहुँचते हुऐ अनेक आचरण सिखाये जाते है। जैसे - बड़ों को सम्मान देना, माता पिता एवं अपने बुजुर्गों का आदर करना। बात संस्कार की आज मेरे मन में है जिसके लिए मैंने ये ताना बाना बुना है। हमने जिस संस्कार का विवरण ऊपर दिया है वो आज दिखते है पर ये संस्कार कुछ नकुछ धूमिल होते जा रहेंहै।। मैं ये नही कहता कि आज हमारेसंस्कार खत्म हो रहे है। पर कुछ न कुछ कमी जरूर हो रही, चाहे हो पालन-पोषण में हो या फिर परिवार के लोगों का बच्चों की परवरिश में आभाव हो।
हमारे नैतिक स्तर के स्तर में गिरावट हुई हैयह बात हम सब को माननी ही होगी।
हम अपने को बहुत पढ़ालिखा होने पर बड़ों को सम्मान देना भूल जाते हैं ऐसा होते मैंने देखा है । आज के युवा का चलन अपने से बड़ों से मिलने का जो है वो है हाय, हैलोतक सीमित रह गया है।
कुछ दशक की बात करें तो हम अपने बुजुर्गों को झुककर पैर छूते थे ,यहां पर पैर छूने से जो मतलब था वो मात्र था सम्मान देने का ।
पर आज इस तरह के दृश्य हमको देखने को मिलता है कि जब बेटा बाप से मिलता है तो हाथ मिलाता है आखिर कहां गया वह भारत जहां कि हम अपने से बड़ो के लिए अपना स्थान छोड़ देते थे। । यह बदलाव विकास का है या फिर पाश्चात्य सभ्यता का है, जिसके की हम गुलाम होते जा रहें है। अच्छी बातें हमें हर समाज से लेनी चाहिए वो चाहे जितना बुरा क्यों न हो पर बुरे समाज की बुराईयों को हम बहुत अच्छे से ले रहें है।
मुझे दुख हुआ तब जब मै आजअपने दोस्त के घर गया (जहां पर मुझे ये बताया गया था जकि हमेशा बडोंको आप सम्मान दो) वहीं मुझे उनसे हाथ मिलाना पड़ा । बहुत ही अटपटेतौर पर मैंने हाथ मिलाया और मन में यह बात बार-बार सोचता रहा कि क्याहमारे आजेहमसे दूर जा रहें है । क्यों इतना बदलाव आगयाहममें । ।बाबा की बाते आज भी याद आती हैं हम को, कि भैया( साहब प्यारसे पुकारते थे) तू रोज सबेरे उठके अपने से जेतना जने बड़ा अहइ उनकै गोड़ धरा करा ( अवधी भाषा के शब्द थे ) ।
न जाने ये बात जादू जैसी लगती है।।
Wednesday, March 25, 2009
मैं खुश हुआ घर आने के लिए जितना मैं इलाहाबाद जाने के लिए ना था [संस्मरण]
अब हम भी चल दिये अपने कमरे की तरफ , रास्ते में कुछ दूर पर ही रिक्शा मिलता था, वहा पहुंचे । एक कोई विद्यालय था ,कुछ लड़के खड़े हो चाय के साथ सिगरेट पी रहे थे तो कुछ किसी बात पर ठहाका लगा रहे थे यह देख मुझे बहुत ही अजीब लगा । रिक्शे से रूम पर पहुंचे ।
पहली बार घर से इतनी दूर मैं था ........सफर तो कट गया अब मां और अपने घर और गांव की याद आने लगी ...भैया ने कहा कुछ खा लो पर मैं न खा सका पता नहीं बस रोने का मन हो रहा था। साथ भैया थे इस लिए नहीं रोया ...वे किसीकाम से बाहर गये मैं सो गया था शाम हो चुकी थी इस अजीब माहौल में कुछ भी अच्छा न लग रहा था , जब भैया वापस आये तो मैं रोने लगा कहा कि घर जाना है तो भैया ने कह दिया कि ठीक है चलेंगें....... फिर चार दिनों तक रोने धोने के बाद भैया को वापस आना ही पड़ा मेरी जिद के आगे । एक बार फिर से मैं खुश हुआ घर आने के लिए शायद जितना मैं इलाहाबाद जाने के लिए ना हुआ था ।
.वो मुस्कुराती रही दूर से और मैं उसे देखकर चलता रहा
समय की रफ्तार से बढ़ना था और बढ़ता रहा कोई हमसफर की तलाश न थी और न है ही...... पर इस आकर्षण का शिकार होना बहुत ही सुखद और दुखद दोनों ही होता है ऐसा कुछ अनुभव कहता है .....पैसे से ज्यादा जीवन में अभी कुछ भी खास न लगा पर अचानक यह भाव तब गये जब इन सब बातों से परे एक अजनबी नूर का दीदार हो गया .....सुबह शाम होती थी पहले भी पर अब बदली बदली सी लगती है ......।
मालिक के बाद मैंने मकान मालिक को ही जाना, उन भाई की वजह से दिल्ली, नोएडा का सफर होता रहा आये दिन....कमरेबदलना हमारी नयी परपंरा हो गयी है । नये कमरे पर आगमन हुआ ,काफी कुछ बदल जाता है। लोग अजीब सी नजर से देखते हैं नये चहेरे को( मुहल्ले वाले) ।
यह नजर शक की होती है या फिर नयेपन की मालूम नहीं......उन नजरों में एक नजर अपनी सी लगी जिसने मुझे अपना समझा ( जिसे मैं अपना समझा)....... हम एक दूसरे से दूर थे या पास यह न पता पर दूरी का एहसास नहीं लगता जब भी काम से फुरसत मिलती तो नयन मट्का जरूर हो ही जाता.....अब इसे संयोग कहें या फिर किस्मत बिना सोचे सब कुछ होता रहा .....वह मुझे देखकर मुस्कराती और मैं भी उसे देख .....कभी कोई बात न करता चोरीछिपे एक दूसरे को देखते यह हम भी जानते और वो भी जानती पर अच्छा लगता यूँ ही ....ईदिन बीतते गये , कुछ दिन में महीने गुजर गये और हम दोनों अभी भी वैसे ही थे , कभी सामना न हुआ सामने से वरना????????
अब फिर से मालिक की कृपा और कमरा छोड़ पलायन कर दिये हम वो नजर दूर तक नजर आती रही .....चेहरे पर मुस्कान लिये हुए और हम भी मुस्कराते हुए चलते रहे......ये अंजाना रिश्ता बहुत ही शुकून देता हैं मुझे जब भी याद आता है.....हंसता हूँ खुद को सोच के......
हिन्दी साहित्य मंच " कविता प्रतियोगिता " सूचना
हिन्दी साहित्य मंच एक प्रयास हिन्दी साहित्य के नये कवियों के प्रोत्साहन हेतु शुरू कर रहा है । आप सभी यहां पर प्रतियोगिता में हिस्सा लें ,जिससे यह प्रयास सफल हो सके । हिन्दी साहित्य मंच पर हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं को प्रकाशित किया जा सकता है । आप अपनी विधा को मेल कर यहां पर प्रकाशित करवा सकते हैं । साथ ही आपको अपना साहित्य प्रकाशन के लिए सबसे अनिवार्य यह हो जाता है कि आप अपना मौलिक साहित्य ही भेजें । अधिक जानकारी आप यहां से प्राप्त करें-[www.hindisahityamanch.blogspot.com] । हमारा प्रयास हिन्दी विकास । आइये हमारे साथ ।
संचालक ( हिन्दी साहित्य मंच)
Tuesday, March 24, 2009
जब सारे मुसलमान एक से है तो उनके लिए एक राष्ट्र होना चाहिए ?पाकिस्तान से बाग्लादेश फिर क्यों बना ? इस सब के बीच खोयी आतिश की पहचान ,
लेकिन अगर इस बात को ख़ारिज कर दिया जाए कि मुस्लिम उम्मा या एक समान इस्लामी पहचान जैसी कोई चीज़ नहीं है तो फिर ऐसा क्यों है कि फ़लस्तीनियों के संघर्ष के प्रति बांग्लादेश या सूडान का मुसलमान जितना संवेदनशील होता है, उतना तिब्बती लोगों के संघर्ष के प्रति नहीं?
इन सवालों के जवाब अब उस बच्चे ने तलाशने की कोशिश की है जिसे उसके पिता ने उसे डेढ़ साल की उम्र में ही त्याग दिया और फिर कभी पलट कर उसकी ओर नहीं देखा।इस बच्चे की माँ भारतीय थी और पिता पाकिस्तानी ।अट्ठाईस साल पहले अपनी एक किताब के प्रकाशन के सिलसिले में दिल्ली आए इस शख़्स की मुलाक़ात एक नामी महिला पत्रकार से हुई।एक हफ़्ते तक दोनों के बीच नज़दीकियाँ गहराईं और नतीजे में जन्म हुआ आतिश तासीर का।पाकिस्तान से आए इस शख़्स का नाम है सलमान तासीर जो पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के बड़े नेताओं में से एक हैं और पंजाब सूबे के गवर्नर भी।
पिता के राजनीतिक करियर के कारण आतिश तासीर के जन्म की बात छिपाकर रखी गई । आतिश की परवरिश भारत में ही हुई लेकिन उनकी माँ ने उन्हें इस्लामी पहचान दी, हालाँकि वो ख़ुद सिख हैं। ये संकट सिर्फ़ भारतीय या पाकिस्तानी होने का ही नहीं है बल्कि एक मुसलमान पिता और सिख माँ की संतान होने का भी संकट है।
इस तरह की परिस्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है ? और देगा आतिश को पहचान ? कि क्या वह मुस्मिल है ? उसका पिता कौन है ? किस धर्म का है ? यह सब कई सवाल आयेगें सामने ।
शहादत बनाम नैनों
स्वार्थ और राजनीति के कारण कुछ नयापन नहीं सिवाय कोई मूर्ति या फिर सड़क नाम जरूर मिल जाता है इसके अलावा कहीं कुछ नहीं । युवा पीढ़ी का रूझान जिस तरह से रहा वो भी निराशा जनक रहा । युवा पीढ़ी को शहीद दिवस की कोई जानकारी ही न रही । अगर यही शायद वेलेंटाइन डे होता तो बताने की जरूरत ही न होती ।कहीं न कहीं बाजारवाद का बढ़ता हुआ प्रभाव इन शहीदों को उपेक्षित होने में सहायक है । आज जिस तरह से किसी भी दिवस को जैसे प्रस्तुत किया जाता है वह उसी रूप को साकार करता है । चुनाव ने इन वीरों की शहादत को कहीं पीछे छोड़ दिया । यह बहुत ही दुखद है और शर्मनाक भी ।
Monday, March 23, 2009
परिवर्तन ............................[एक नजर]
सभी कहते मैं न बदला । जब भी घर जाता मां यही कहती तू तो बिल्कुल वैसा ही है ।
अपने गांव का बचपन याद आता है ,
हम लोग पेड़ पर बंदरों कीतरह चढ़कर " चिलांघो" खेलते ।
रात के गायों के बाड़े मेंछिप, खटिया ने नीचे छिप , टुक्कीटुइया का खेल खेलते ।
मां के एक बार पुकारने पर डर जाते , घर को जाते मार के डर से।
मां प्यार से पढ़ाती और फिर खाना खिलाती , सो जाते ।
सुबह-सुबह मां मुझे और भैया को तैयार करती ,
स्कूल भेजती , कई बातें याद आती हैं ,
मैं क्या बना हूँ , क्या मैं जो बनना चाहता था। ,
कभी खुद से खुश होता हूँ और कभी दुखी होता हूँ ।
शायद मैं वैसा ही बना जैसा मुझे सब बनाना चाहते थे ।
और अब भी लोग यही कहते हैं कि मैं बिल्कुल वैसा हूँ ।
क्या यही परिवर्तन है ,
तो ठीक है ,
पर क्या खोया क्या पाया कुछ याद नहीं ।
जैसा हूँ क्या यही बनना था मुझे ।
अब कुछ ऐसी है अपनी लाइफ
दिल्ली की लाइफ भी अन्य मेट्रो सिटी जैसी ही है , इंसान भागमभाग में हैरान परेशान है , हाल बेहाल है फिर भी दौड़ भाग नियमित है अरे भई भागना ही है तो किसी प्रतियोगिता में भाग लो तो कुछ परिणाम भी आये यहां तो बस लगे रहो " इण्डिया का नारा " है । फुरसत नहीं सांस लेने की कहते हैं बहुत से लोग तो फिर भई जिंदा भी नहीं होगे मतलब कि भूत जैसे तो कुछ नहीं । वैसे भी कहां रही आज मानवता । शायद कभी रही होगी । इंसान क्या हकीकत में इंसान है ? शक की सुई घूमती है इस प्रश्न पर जेहन में।
जब विश्वास खत्म होता है सब नाते रिश्ते , भाईचारा , प्यार सभी कुछ खत्म हो गया है , विकास में इंसान भी विकास ही कर रहा है मानव से मशीन बन गया है तो विकास ही तो हुआ न । पैसा आज ही नहीं हमेशा से जीवन के लिए आवश्यक रहा पर एक बात कि सब कुछ नहीं रहा है । हमारे विचार , हमारी सोच और हमारे जीवन जीने का ढ़ग एक रास्ता तय करता है भविष्य का पर आज की पालिशी हम सबको पता है । विश्वास का आता पता नहीं , प्रेम क्या है शायद किसी का नाम और रिश्ते वो तो मोबाइल नें जब्त कर लिये हैं । सुविधायें बनी है आराम मिला आराम हराम हो गया कब पता भी नहीं चला । खुदगर्ज होना स्वार्थी होना , चापलूसी करना ये सब आज के नये तरीके है आगे बढ़ने के।
सफलता का मापक है कमायी यानी पैसा तो ठीक है भईया करिये कमायी वो पता नहीं कहा कहां से आयी । सब समझना और फिर सब समझते हुए भी न समझना ही समझना है । देखिये सब पर ऐसा लगे कि आपने कुछ नहीं देखा आंखे है पर वही देखने के लिये जो आपको दिखाया जाय। चलो अच्छा कुछ नया नहीं करना होगा जियों ऐसे ही वैसे भी जी क्या रहे हो बस जीने का दिखावा ही है । कहते है कि बोलिये पर किसी को सुनाई न दे । सही भी है सुनना कौन चाहता ही है ।
Sunday, March 22, 2009
आज याद कर लो फिर अगले २३ मार्च तक के लिए भूल जाओ भगत सिंह को

शहीद दिवस भगत सिंह की कुर्बानी की याद दिलाता है , २३ मार्च का दिन रहा जब ये वीर युवा देश की स्वतंत्रता के लिए कुर्बानी दी ,फांसी पर लटके । आज याद कर फिर अगले २३ मार्च तक भूल जायें । यही है भगत सिंह की कुर्बानी और कुछ इस तरह से याद करते हैं । ऐसे शहीदों की कुर्बानी तभी सफल है जब उनके विचार और आदर्शों को जिंदा रखें जिससे भगत सिंह को भूलने की जरूरत ही न पड़े । शत शत नमन ऐसे वीरों को ।
सफर पूरा कर चल दी अंतिम यात्रा पर जेड गुडी......... श्रद्धाजंलि

सफर पूरा करते हैं सभी । जेड गुडी का सफर पूरा हुआ । कुछ दिनों से वे मौत से लड़ रही एक बहादुर योद्धा की तरह ।समाचार दुखद है पर ये तो तय ही था कि अब जीवन के चंद लम्हे ही उनके पास बचे हैं । जानती थी वो , उन्होंने कहा था कि जब वो सोती हैं तो भी डर लगता है कि कहीं नींद खुले ही ना । और इस सच के साथ जीवन के अंतिम सच पर बढ़ गयी । विवादों से जेटी ने बहुत प्रसिद्धि पायी थी ।वर्ष 2007 में ब्रितानी रियलिटी शो बिग ब्रदर में जेड गुडी पर आरोप लगे थे कि उन्होंने भारतीय अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी के साथ नस्लवादी बर्ताव किया था। इसके बाद सुलह और फिर भारत के वर्ष 2008 में जब जेड गुडी बिग ब्रदर के भारतीय संस्करण और शिल्पा की मेज़बानी वाले रियलिटी शो बिग बॉस में हिस्सा लेने भारत आई थीं, तब दोनों के बीच सुलह हो गई थी।
जेडी के निधन पर पूरा विश्व जगत शोक संतृप्त है । एक बहादुर महिला को श्रद्धांजलि ।
Saturday, March 21, 2009
आगे बढ़े कदम......[एक कविता]
कल को पहचान लो
वक्त उसी की मुट्ठी में है
जो ठान लो
उसे अंजाम दो
नाहि झुको नाहि रुको
संयम सदा बनाये रखो
बाधायें चाहे जितनी आयें
उन्हे लांघ बढ़ चलो
वक्त किसी का सगा नहीं
उसे आगे बढ़ते जाना है
जो संग उसके चल लिया
निश्चित विजय उसे पाना है
तो सोच क्या रहा है तू
आगे बढ़ा अपने कदम
नव क्रांती कि ज्योत जलाने
बन मील का पत्थर ॰॰॰॰॰॰॰॰
प्रस्तुति-कवि विनोद बिस्सा
मेरी किस्मत में कहां हैं............पढ़ाई बाबू
सुबह सोने के बाद में आज छोटू के दुकान पर पहुंच गया कोई एक दो ही और चहककड़ी वहां पर रहे होगें । मैंने आज तक नाम न पूंछा था छोटा था इसलिए छोटू ही कहता था । उससे जब नाम पूछा तो पता चला कि उसका नाम है मिथिलेश । बिहार का रहने वाला । कुछ देर बाद मैंने पूंछा कि कितने भाई तो जवाब मिला अकेला हूँ...................फिर मैंने यूँ ही पूंछा कि कितने बजे दुकान खुल जाती है ( क्योंकि मैं ११ बजे के बाद ही जाता था दुकान पर )। और रात ९ बजे बंद होती है.........खाना शायद उसकी कोई दूर की चाची बनाकर देती है ।
पढ़ायी के बारे में पूछा तो कुछ खास न कह सका बस इतना ही बोल सका कि मेरी किस्मत में कहा है पढ़ाई बाबू .........उस बच्चे के इस बात से सिर्फ उसकी बेबसी ही नजर आयी । घर से इतना दूर वह मात्र ५०० रूपये पर दिन रात काम करता है । ये है हमारा प्यारा भारत और हमारे भविष्य ।
Friday, March 20, 2009
खामोश रात में तुम्हारी यादें -[एक कविता ]
हल्की सी आहट के साथ
दस्तक देती हैं,
बंद आखों से देखता हूँ तुमको,
इंतजार करते-करते परेशां
नहीं होता अब,
आदत हो गयी है तुमको देर से आने की,
कितनी बार तो शिकायत की थी तुम से ही,
पर
क्या तुमने कसी बात पर गौर किया ,
नहीं न ,
आखिर मैं क्यों तुमसे इतनी ,
उम्मीद करता हूँ ,
क्यों मैं विश्वास करता हूँ,
तुम पर,
जान पाता कुछ भी नहीं ,
पर
तुमसे ही सारी उम्मीदें जुड़ी हैं,
तन्हाई में,
उदासी में ,
जीवन के हस पल में,
खामोश दस्तक के साथ
आती हैं तुम्हारी यादें,
महसूस करता हूँ तुम्हारी खुशबू को,
तुम्हारे एहसास को,
तुम्हारे दिल की धड़कन का बढ़ना,
और
तुम्हारे चेहरे की शर्मीली लालिमा को,
महसूसस करता हूँ-
तुम्हारा स्पर्श,
तुम्हारी गर्म सांसे,
उस पर तुम्हारी खामोश
और आगोश में करने वाली मध्धम बयार को।
खामोश रात में बंद पलकों से,
इंतजार करता हूँ तुम्हारी इन यादों को...........