जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंजिल की,
धोखा था नजरों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।
समझा था कैद है तकदीर मेरी मुट्ठी में,
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा,
एक झोका था हवा का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मैं समझता रहा हूँ जिसे जान, जिगर , दिल अपना,
मुझे दीवाना वो कहते हैं और इसके सिवा कुछभी नहीं।
आजकल प्यार मेैं अपने से बहुत करता हूँ,
हो ये ख्वाब इसके सिवा कुछ भी नहीं।
लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है,
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।
तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी,
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।
8 comments:
very good expression with good rhyme and selection of words which make the poem touching
hi neesho,well i hve no words left to xpress my views abt this poem.well i only want to say that u r gr8 n keep it up.kuch aur nayi poems likho aur hame avgat karao.BEST OF LUCK..........
मक़्ता खूब है ग़ज़ल अच्छी है, माशा अल्लाह!!!
जीवन का दूसरा नाम अक्सर लगा है
कुछ भी नहीं.......
बहुत सही,और बढिया
s awesome dear kabhi is khwab se haqikat me milwao to baat hai
keep it up
बहुत अच्छा लिखा है,
थोड़ा उदूँ शब्दों ज्यादा प्रयोग होता तो बेहतरीन गजल होती। बधाई
bahut achhi lagi.
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