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Thursday, March 27, 2008

गजलः बने तो मौत बने

जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंजिल की,
धोखा था नजरों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।

समझा था कैद है तकदीर मेरी मुट्ठी में,
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।

मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा,
एक झोका था हवा का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।

मैं समझता रहा हूँ जिसे जान, जिगर , दिल अपना,
मुझे दीवाना वो कहते हैं और इसके सिवा कुछभी नहीं।

आजकल प्यार मेैं अपने से बहुत करता हूँ,
हो ये ख्वाब इसके सिवा कुछ भी नहीं।

लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है,
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।

तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी,
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।

8 comments:

khushi said...

very good expression with good rhyme and selection of words which make the poem touching

KRAZZY said...
This comment has been removed by the author.
KRAZZY said...

hi neesho,well i hve no words left to xpress my views abt this poem.well i only want to say that u r gr8 n keep it up.kuch aur nayi poems likho aur hame avgat karao.BEST OF LUCK..........

सतपाल ख़याल said...

मक़्ता खूब है ग़ज़ल अच्छी है, माशा अल्लाह!!!

रश्मि प्रभा... said...

जीवन का दूसरा नाम अक्सर लगा है
कुछ भी नहीं.......
बहुत सही,और बढिया

moon said...

s awesome dear kabhi is khwab se haqikat me milwao to baat hai
keep it up

Pramendra Pratap Singh said...

बहुत अच्‍छा लिखा है,

थोड़ा उदूँ शब्‍दों ज्‍यादा प्रयोग होता तो बेहतरीन गजल होती। बधाई

सरस्वती प्रसाद said...

bahut achhi lagi.