जब लगा खत्म हुई अब तलाश मंज़िल की।
धोका था नज़रों का वो इसके सिवा कुछ भी नहीं।।
समझा था क़ैद है तक़दीर मेरी मुट्ठी में;
रेत के दाने थे वे इसके सिवा कुछ भी नहीं।
मैं समझता रहा एहसास जिसे महका सा;
एक झोंका था हवा का वो और कुछ भी नहीं।
मैं समझता हूँ जिसे जान,जिगर,दिल अपना;
मुझे दिवाना वो कहते हैं और कुछ भी नहीं।
आजकल प्यार मैं अपने से बहुत करता हूँ;
होगा ये ख़्वाब और इसके सिवा कुछ भी नहीं।
लगा था रोशनी है दर ये मेरा रोशन है;
थी आग दिल में लगी इसके सिवा कुछ भी नहीं।
तेरे सिवाय जो कोई बने महबूब मेरी ;
बने तो मौत बने इसके सिवा कुछ भी नहीं।।
5 comments:
बढ़िया है. लिखते रहो. शुभकामनायें.
Mahbuub to sabhi bana lete hain..
par rishta nibha nahi pate hain...
Kahte hain pyaar ka naam qurbani hai...
par yeah qurbani Ashiq hi kyun diya karte hain...
Aie khuda tere dar pe dua yahi manga hai...
jisne bhi pyaar kiya ho use uska mahbuub mil jaye..
jinki duniya veerani hai...usme Khushnuma Gul khil jaye
apne bahut acchha likha hai....ujjwal bhavishya apka intzaar kar raha hai...keep it up
achha likha hai neeshu. keep on writing . God bless u
Nice one..Keep writing..
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