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Saturday, March 29, 2008

रिश्ते में क्यों आगयी कडुवाहट ?

जीवन की इस भाग दौड़ में रिशते कुछ धूमिल हो गये हैं, आपस में एक दूसरे पर अविश्वास की गहराई में दिन-प्रतिदिन जो फासला है वो बढ़ता ही जा रहा है।।कुछ रिश्ते टूटते हैं तो कुछ नये रिश्ते भी बनते हैं यह सिलसिला जीवन भर ऐसे ही चलता रहता।नये रिश्ते को बनाना मुश्किल नहीं पर पुराने रिश्ते को कायम रखना मुश्किल है ,जो न जाने कब से है हमारे साथ ,शायद जब हम बोलना नहीं जानते थे या फिर हम चलना नहीं जानते थै।
जिन हाथों का सहारा पकड़ के चलना सीखा . जिनके आवाज से तुतलाकर बोलना सीखा । आज उन रिश्तों को हम कहीं दूर छोड़ आये है ,आखिर में मानवता का गला हमने घो़ट दिया ,हम जब भी कुत्ते को पालते तो आमतौर पर यही सोच के कि हमारे दरवाजे पर किसी के आने पर भौकेगा जरूर.
,अपने मालिक के प्रति वफादारी निभायेगा। जब हम जानवर से ये उम्मीद लगा सकते हैं या लगाते हैं, तो हम तो मानव हैं इस सृष्टि की सबसे सुन्दर रचना,जो समझता हैदूसरे के प्रेम को उसकी भावनाओं । आज हम अपने जिगदीं को सवारने वाली कड़ी के अस्तित्व को इन्कार कर रहें , आखिर कल जब यही मेरे साथ होगा तब. वर्तमान में है हम। कितना गलत है ये हमको भी पता हम भी जानते ,पर बहाना बना कर लिया अनजान होने का , चादर ओढ़ ली है दिखावे और भूलते जा रहें नाते रिशते।
जब अपने से ज्यादा करीबी कोई पराया लगता है तो क्यों टूट जाता है इंसान इतना , वैसे समय का नजरिया यही है और माग भी यही है। इस भीड़ में भी मिल जाते है अन्जान े चेहरे कुछ पल को पर हाथ नहीं बढ़ता जिदगी भर साथ निभाने को ।
किसी को समय नहीं है , किसी के पास पैसे नहीं और किसी के पास सबकुछ है तो भी वह भूलता जा रहा है अपने अपने उस जड़ को ,उस नीव को जिस पर की आज ये आली शान इमारत बनी है । ऐसेनहीं तैयार होता है गुलशन में फूल , आखिर माली ने तो बहाये ही होगे पसीने अपने सीचा होगा अपने खून से । पर अहिमियत को भूल कर हमने दिखाया ये कि हम को नहीं खुद को भूल गये है , खुद को भूल गये हैं।
आइयेसोचे और मनन करे इस पर ।।।

6 comments:

KRAZZY said...

well done,neeshoo.sahi me tumne bahut hi achha topic liya aur use bhali bhanti apne shabdon me prastut kiya.aage bhi aapse aise hi rachnaon ki kalpana karta hun.

रश्मि प्रभा... said...

रिश्ते???????
अब तो बस भौतिकता की अंधी दौड़,
अंधा रिश्ता है......
मनन करना ज़रूरी है,
उन शाखों को बचाना ज़रूरी है,जो हमें खुली बहार देते हैं,
जीवन का सत्य देते हैं.....
बहुत अच्छा

surabhi said...

सच को चर्चा में रखा है आपने आज इन्सान अपने बडो के प्रति कि संग दिल हो गया है भूल गया है आगे वो भी उस दोर से गुजरेगा तब क्या गुजरेगी दिल पर
धन्यवाद कि आप ज्वलंत विषयों पर लिखते है

राज भाटिय़ा said...

बहुत खुब लिखा आप ने,आज हम अपनो से ज्यादा पेसे को सम्मान देने लगे हे,अपनो को बोझ समझते हे,क्यो कि हम ज्यादा समझदार हो गये हे,बुढे मां वाप हमे वेबकुफ़ ओर उज्जड लगते हे, जिन्हो ने अपने खुन पसीने से हमे पाला,लेकिन हमे भुलना नही चहिये जो हम आज बो रहे हे, कल वही हम पाये गे काटे गे,पेसा पेसा जो किसी का नही होता.

Asha Joglekar said...

यह सही है कि भौतिकता कुछ ज्यादा ही हावी हो रही है हम पर । यह भी सही है कि नई पीढी आत्म केंद्रित हो गई है । पर यह है पीढियों का अंतराल (जनरेशन गैप) जिसे हम पाट नही पा रहे । हम ने भी अपने बुजुर्गों के लिये उससे कुछ कम ही किया जो उन्होने अपने बुजुर्गों के लिये किया था । तो अब हमारे बच्चे कुछ कम कर रहे हैं तो हम शिकायत नही कर सकते । आवश्यक्ता है कि हम दूसरों को दोष देने से पहले अपने अंदर भी झाँके ।

Udan Tashtari said...

मनन योग्य है-मगर कितने कर पायेंगे. सही है कम से कम चर्चा में रहे.