धर्म और संस्कृति हमेशा मेरे लिए विषमय की स्थिति पैदा करती रही है।साथ में धर्म के साथ ही आसथा को जुड़ते हुए सुनता हूँ । कई सवाल मन को कुरेदते हैं । और कोई ऐसा अवसर नही मिला या आया कि मेरे प्रशनों सही सही जवाब मिल सके। धर्म तो समझना आसान है कयों कि ये हमारे समाज के कुछ लोगो में पुराने समय में कार्य के अुनुसार ही बना दिये थे । जिसका बिगड़ा हुआ रूप आज हम समाज में ऊच-नीच एवं भेदभाव के रूप में पाते हैं।
धर्म से जुढ़ा हुआ शब्द आस्था है, जिसका कि समाज के कुछ विशेष वर्ग लोग अपनी आवश्यकता और इच्छा के अनुसार लाभ उठाते हैं। भारतीय लोग धर्म को बहुत ज्यादा महत्व देते हैं जिससे उनकी आस्था का भी प्रश्न आता है ,तो ऐसे ईश्वर और भगवान को सामाजिक स्तर पर गुरूओं औरमठाधीशों ने अपने अनुसार अल्लेख किया है। मै इस बात पर नहीं जाना चाहता कि ईश्वर हैकि नहीं अन्यथा विषय बदल जायेगा।
भारतीय लोग बहुत भोले है यह बात सिध्ध है , किसी भी बात को बहुत जल्दी मान लेते हैं विश्वास कर लेते हैं। पर इस धर्म और आस्था के पीछे जो खेल होता है उससे वे अन्जान होते है। महागुरू, सतगुरू ,आचार्य इत्यादि पदवी धारक हमारे बीच है, हो सकता है आपमें कुछ उनके मानने वाले हो तो उनसे माफी चाहूँगा । कुछ समय पहले इलाहाबाद से बनारस जा रहे स्वामी जी को गोलियों सेभूना गया, वजह का पता अब तक न चल सका। और स्वामी जी के कार में केवल १९ वर्ष से २१ वर्षकी लड़कियां थी । जो नेपाल की थी।
ये संत , महात्मा समाज में ईश्वर को सहारा बना कर समाज में अनेक अपराध कर रहें है, और करते रहेगें क्यों कि हम इतने भोले जो है।
बाबा जी का शिविर लगता है तो इंटृी फीस तय की जाती है .आखिर बाबा जी को मोह माया से क्या मतलब ? लेकिन मतलब है, नहीं तो बाबा को महगी कार कहां से आयेगी?ऐशोआराम कहां से होगा? तमाम तरह के ऐसे मादक पदार्थ का सेवन होता है इन मठों में जो कि अववैध है पर कोई कुछ नही कर सकता । हम तो बस आखं मूद कर चलते हैं।। बाबा बनकर लोगो को लूटों कयोकि हम लुटाने को तैयार जो है।।।।
7 comments:
धर्म और आस्था पर बहुत ही विवेक के साथ आपने लिखा है ....... असल में हम सब अपनी इतनी समस्याओं के जाल में उलझे हुवे हैं की जो भी आशा की किरण का अहसास कराता है उसके पीछे चल देते है....
लेकिन जागरूक होने और संभलने की जरुरत है.........
आप ने जो लिखा है वो तो बिलकुल सही लिखा है लेकिन मै सोचता हू कि लिखने से क्या हो जायेगा क्यो कि आप कि नजर मे जो भोले है वो तो इसको परने से रहे, और जो परेन्गे वो भोले तो नही होन्गे.
A very good story on religion and faith.people should their way of thinking adter reading this story.
जाकी रही भावना जैसी - तीन प्रभु मूरत देखी वैसी. साधू के वेश में सैतान चारों युगों में पाए गए हैं. हर धर्म में मिलते हैं हर शहर में मीलते है.
कई बार नज़र का भी फेर होता है. गंगा के कीनारे बैठने वाले सारे स्वर्ग में नहीं जाते
नीसू जी आप का प्रयास अती सुंदर है. वीशय गंभीर है .
जी अपने बहुत बढ़िया लेख लिखा हैं...
जहा तक मेरी बात हैं तो मैं धर्म ( जो आज कल का हैं ) को नहीं मानता हूँ......
जब धर्म की खोज या शुरुवात हुई थी तब इसे मानव के हित के लिए बनाया गया था..लेकिन बाद मैं यह कुछ लोगो का एकाधिकार बन के रह गया .....
जहा तक आस्था का सवाल हैं तो वो विश्वास का इक बढ़ता हुआ प्रतीक हैं और यह सही हैं का हर वयक्ति के अन्दर होना चाहिए....
मैं आपके द्वारा इस लेख पे यही कहना चाहता हूँ का काश लोगो को ये बात समझ मैं आ जाये और लोग भगवान् के द्वारा प्रदान का गयी हर वस्तु का सही तरीके से उपयोग करे...
आप का लेख बहुत अच्छा हे, लेकिन भारत मे मुरखो की भी कमी नही हे,पखण्डियो ओर हाथ की साफ़ई करने वाले को पुजते हे,एक भी गुरु बताओ जो सही हो ,सब कुते हे,ओर लोग जान बुझ कर फ़िर भी जाये तो कया कहोगे उनहे ?
धर्म और आस्था के पीछे जो खेल है,
उसको अच्छी तरह उभारा है आपने-प्रशंसनिए
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