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Saturday, March 15, 2008

हाकी अब हांफी


हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम,
वो कतल भी करते हैं तो चरचा नहीं होती।
चरचा होगी जरूर होगी ,चर्चा तभी होती है जब कुछ अलग हो या कुछ अलग कर जायें .तो आजकल कुछ ऐसा ही हो रहा है भारत में। किर्केट बनाम हाकी ।एक तरफ खुशी तो दूसरी तरफ गम ही गम।
क्रिकेट टीम ने विश्व चैम्पियन को उसके घर में घुसकर लताड़ा है और घमण्ड को चकनाचूर कर दिया और अपनी बादशाहत की दिशा में एक ठोस कदम बढ़ा दिया है।
युवा बरिगेड ने कंगारूओं को चारों खाने चित्त कर दिया , कंगारू कप्तान की बोलती बंद कर दी और इतिहास में एक और सुखद पन्ना जोड़ दिया।
दूसरी तरफ आठ ओलम्पिक स्वर्ण पदक जीत चुकी भारतीय हाकी टीम को अपने काले दिनों में लिपीपुती है.
हाकी टीम के हार का सारा गुस्सा कोच पर उतारा और उन्हें अपना पद छोड़ना पड़ा भारतीय हाकी संघ के अध्यक्ष के . पी. यस .गिल भी कटधरे में है।
परन्तु यहां बात यह है कि क्या कोच के पद छोड़ने से हाकी खेल में सुधार होगा? हमेशा प्रश्न उठता है कि सरकार खेलों में भेदभाव करती है। मूलभूत आवश्कता सुविधाएं नही उपलब्ध हैं, आखिर कब तक ऐसे प्रशन आते रहेंगें?ब्चाव के लिए तो हम इन प्रशनों से संतुष्ट हो सकते हैं. पर सुधार अगर करना है तो खेल के प्रदर्शन को बेहतर करना होगा । अपनी कमियों को सुधारना होगा। न कि आरोप लगाकर बचाव करना।
ओलम्पिक में जो टीम प्रवेश नहीं कर सकी भविष्य में भला उससे क्या उम्मीद किया जाय? आरोप प्रत्यारोप को खत्म कर एक उद्देशय लेकर सही दिशा में आगे बढ़ना होगा तभी कुछ उम्मीद की जा सकती है।

2 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

अगर मीडिया पीछे पड़ ले तो हॉकी कल्चर कुछ लाइन पर आ सकती है। वरना........

अविनाश वाचस्पति said...

हाकी अब हांफी
तो चलो बैठकर
सब पिएं काफी.