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Wednesday, September 5, 2007

न ये जाना मैंने

कितना टूटा ,कितना बिखरा न ये जाना मैंने।तुमको चाहा , तुमको पूजा ये माना मैनेयाद करके ही अब जीलेता हूँ मै तो, तुमने क्या माना, न ये जाना मैंने।एक बार जो कर देती इजहार-ए-मुहब्बत, तो क्या जाता तेरा। न कहलातामहफिल में दीवाना तेराएक अर्ज है तुमसे,अपना मानो या न मानो कोई बात नहीं,पर न कहना कभी बेगाना मुझको।

3 comments:

Udan Tashtari said...

नीशु, थोड़ा लाईन ब्रेक पर ध्यान दो...कहाँ लाईन खत्म हो रही है पता ही नहीं चलता.

पढ़ने में दिक्कत होती है तो लोग नहीं पढ़ते.

कृप्या अन्यथा न लेना बस सुझाव है.

Pramendra Pratap Singh said...

Udan Tashtari जी की बात पर ध्‍यान दिया जाये।

अच्‍छा लिखा है।

Unknown said...

अच्छा लिखा है नीशु। लिखते रहो शुभकामनायें।