जब कुछ लिखिये तो यह बात मन में होती है जो कुछ मैने लिखा है वह सही है या फिर क्या गलती रह गयी है और यह कितना पसंद किया जायेगा और इसका मापक यह है कि जो लिखा है उसको कितने लोग पढते हैं और कितने लोग उस पर अपनी प्रतिक्रया और टिप्पणी करते है।पर मैने अब तक अपने ब्लाग पर जो भी लिखा है उसको हमारे ब्लागर समूह नें काफी हद तक पंसद भी किया है और जो कुछ कमियां रह गयी उसे बहुत ही अच्छी तरह से सुधारने के लिए टिप्पणियों द्वारा बताया ।
मै तो अपने को सौभागयशाली मानता हूँ क्यों कि मै एसी जगह पर लिख रहा हूँ ।जहाँ पर मेरी कमियां और अच्छाईयों का पता आसानी से चल जाता है । वैसे मैं ब्लाग के बारे में बहुत कुछ नहीं जानता था पर जब से मैने दिल्ली की राह(२८-०४-२००७) पकडी। तब मेरा उद्देश्य किसी अच्छे मीडिया स्कूल से पत्रकारिता करने का था और मैने कई जगह पर प्रवेश परीक्षाएं दी पर असफल रहा और अततः माखन लाल राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय में मास्टर्स आफ जर्नलिस्म में दाखिला हो गया । तो मन में कुछ लिखने की इच्छा होने लगी मैने कापी और कलम का सहारा लिया । और हाँ ब्लाग चलाने की प्रेरणा मुझे अपने भैया श्री पकंज तिवारी और मेरे मित्र प्रमेंन्द्रजी से मिली।
वैसे मेरी शिक्षा तो इलाहाबाद में हुई, तथा वही से ही लिखने का शौक था, पर १२वीं के बाद से मैंने कुछ कम ही लिखने का काम किया पर जब मुझे पत्रकारिता के क्षेत्र में आना ही था तो मैने दुबारा लिखना प्रारम्भ किया । और मैने कई लोगो की मदद से एक ब्लाग बनाया जिसका नाम "मीडिया व्यूह" रखा ।
पर सब कुछ बिलकुल नया था, इस लिए बहुत ही अटपटा लग रहा था और ना ही मुझे हिन्दी लिखने ही आता था तो अब एक और समस्या कि किस प्रकार से मैं अपनी लिखी हुई कविताऐं और लेख को ब्लाग पर डाल सकूं ।तो फिर यहां पर शैलेश जी हिन्द-युग्म के और अपने भाई साहब की मदद से हिन्दी लिखना सुलभ हो पाया और अब तक तो काफी हद तक लिखने भी लगा हूँ। तो यहां मेरे मन में यह विचार आता कि ऐसे बहुत से लोग है जो कि हिन्दी के लिए कुछ करना चाहते है पर हिन्दी न लिख पाने के कारण इस सबसे वंचित रह जाते है। अतः यहाँ पर सभी ब्लागर का ये दायित्व हो जाता है कि वे कुछ न कुछ लोगो की मदद अवश्य करें। और हिन्दी टंकण में सहायता प्रदान करें।
3 comments:
जी, करता हूँ.
आपकी सलाह का पालन होगा.
सही विचार हैं.हम भी लगे हैं इस ओर.
सही!!
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