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Friday, September 14, 2007

तुम बिन


तुम बिन सूना मन का आगंन,
तुम बिन सूना मेरा जीवन,
तुम नहीं तो लगता है,
जिंदगी कुछ भी नही।
तुम हो तो जिंदगी अधूरी नही,
सोचती हूँ क्या हो तुम मेरे?
इस रिश्ते को क्या नाम दूँ?
क्या पहचान दूँ?
और सोचते -२ उलझ जाती हूँ,
फिर अपने आप से कहती हूँ,
अरे तुम तो मेरे अच्छे दोस्त हो,
मेरे हृदय के सफेद पृष्ठपर कर दिये तुम ने हस्ताक्षर ,
और उस हस्ताक्षर को जीवन का अंग मानकर जीती रहीं हूँ मैं।
तुमने तो शब्दों के ऐसे जाल बुने,
फंस जाऊगीं मै तुम्हें पता था।
भूल गयी थी मैं,
कि तुम एक मर्द ही हो,
दिल तोड़ना तुम्हारी फितरत है।।।।।।।।।




प्रिया प्रांजल तिवारी की तरफ से

2 comments:

Unknown said...

ji priya ji prayash bahut hi accha hai likhti rahiye aise hi.

Pramendra Pratap Singh said...

प्रयास सराहनीय है, पर पढ़ने में प्रवाह नही आ रहा है। सच कहूँ तो मजा नही आया। मेरा मकसद आपको नाराज करना नही है, आप बहुत अच्‍छा लिख सकती है।