क्या लिखूँ ? समझ में नही आ रहा है पर लिखना है, सो लिख रहा हूँ । बात कहाँ से शुरू करूँ ,कैसे करू। चलिए अब बात यह है कि भारत में शिक्षा के विकास के लिए है। आप मानिए कि भारत में शिक्षा के स्तर में सुधार हुआ है । खासकर गांव जहाँ पर स्त्रियों की दशा कुछ अव्छी नही हुआ करती थी वही आज सब कुछ बदल गया है। जागरूकता फैली लड़कियों की उपस्थिति अब स्कूल , कालेजों मे वृहत संख्या में देखी जा सकती है। आज ये विषय मुझे उस समय सूझा जब मैने एक ऐसी घटना को देखा तब आश्चर्य चकित रह गया। मैने देखा कि कि एक १२ से १३ साल की बच्ची एक आम के पेड़ के नीचे बोरी विछाये कुछ लिखने और पढ़ने की कोशिश कर रही थी। जबकि उसके पास कोई खास सुविधा नही पर फिर भी एक लगन और पढ़ने का जज्बा। बताइए क्या है उसके पास न तो एक स्कूल बैग । नहीं कापी किताब ,और नही कोई बताने वाला कि जो वह कर रही है उसमें क्या सही है और क्या गलत पर पढने की ख्वाहिस।आज नहीं सही पर एक दिन इन बच्चों से ही भारत का भविष्य उज्जवल होगा।अब बात सरकार की शिक्षा से जुडी हुई योजनाओं की। तो क्या ये योजनाएं सफल है अपने उद्देश्यों में। इन जरूरत मदों के लिए क्या अलग से कोई व्यवस्था होगी ? जवाब किसके पास है यह कोई बताने को तैयार नही है यहां पर यदि हम सूचना के अधिकार की बात करें तो कोई खास फायदा नही होने वाल है। जवाब देर से मिलेगा तथा गोलमटोल भी मिलेगा और हो सकता है कि न भी मिले। भारत बनता है यहां निवास करने वाले हर नागरिक से तो ऐसे में किसी की उपेक्षा कर कैसे आगे बढ़ जाती है सरकार । यदि देखा जाय तो इन गरीब लोगों से ही पार्टियों को सबसे ज्याद वोट मिलते है पर सबसे ज्यादा इन की ही दुर्गति क्यों ?
3 comments:
आपकी सम्वेदन शीलता को प्रंणाम. जारी रखे
हम्म!! चिंतन का विषय. अच्छा लगा पढ़ना.
वो इसलिए सरकार भले इन गरीबों के वोट से बनती हो लेकिन चलती है पूंजीपतियों के इशारे पर. लोकतंत्र के सत्ता की परिभाषा बिल्कुल अलग है.
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