जन संदेश
Tuesday, September 4, 2007
सच जो मैंने देखा
मैं प्रतिदिन बस से नोएडा अपने पत्रकारिता विश्वविद्यालय जाता हूँ रोज वही भाग-दौड़। सुबह उठना और फिर जल्दी-२ नहा धोकर बस पकड़कर नोएडा के लिए रवाना होना यही मेरी दैनिक प्रक्रिया है पर यह बताने के पीछे जो बात है वो यह है कि-मै ३ सितम्बर को नोएडा से वापस नई दिल्ली आने के लिए बस पर बैठ गया क्योंकि मुझे नोएडा के सेक्टर २० में रहने के लिए कमरा ढूढना था इसलिए सेक्टर २० से ही बस पर बैठा। जैसे ही मै बस पर चढा तो देखा कि बस खाली है पर पूरी सीट भरी है केवल कन्डक्टर के बगल वाली ही सीट खाली है तो मैने अपने को वहीं पर स्थापित कर लिया। धीरे -२ बस रूक -२ कर आगे बढने लगी ।अब हाईवे रोड पर आकर बस रूकी( अक्सर जहां पर पढने और काम करने वाले लोगों की भीड़ बस का इंतजार किया करती रहती है) लोगों का चढना शुरू हुआ वैसे सभी स्टैण्ड पर ही ऐसा होता परन्तु भीड़ ज्यादा थी इसलिए मेरा ध्यान चढने वालों पर ही था सब जब चढ़ गये तो मैने कि मेरे पास दो लड़कियाँ खडी है मैंने अपनी सीट खाली कर दी और एक लड़की को बैठने का न्यौता दिया सो औपचारिकता में वह लड़की नहीं कर मना किया तो मैने आग्रह किया और उसने स्वीकार कर लिया। मुझे अच्छा लगा परन्तु अब मै खडा़ था बस की भीड में और मेरे पास कम कपडों में लडकी खडी थी पर वह परेशान थी गर्मी से और अपने बैग से जब मेरा ध्यान उस पर गया तो यही समझ में आया। मैंने तो अपना बैग जो लडकी मेरी सीट पर बैठी थी उसे ही दे दिया था तो मै काफी सहज महसूस कर रहा था ।इसी बीच बस धीरे -२ स्टैण्ड पार करते हुये आगे बढ़ रही थी तभी पीछे से एक ५५-६० वर्ष के भाई साहब मेरे बगल और उस लडकी के पीछे सटकर खडे़ हो गये मैने जब ध्यान दिया तो देखा की वह एक हाथ के विकलांग है । मुझे दया आ गयी उनको देख कर। बस चलती रही मेरा ध्यान उन पुरूष पर था जो मेरे पास ही खडे़ थे । मेने ध्यान दिया तो पाया कि जो लड़की उनके आगे खडी़ है वे बस के धक्के के बहाने पीछे से उसके कंधे को चूमने की कोशिश कर रहें है जैसे ही उनका ध्यान मेरी तरफ आया वे सजग हो गये और थोडा पीछे हट गये ऐसी हरकत एक दो बार होती रही मैने सोचा कि अगर अबकी कुछ किया तो मजा चखा ही दूँगा। पर ऐसी नौबत नहीं आयी वो लड़की अपोलो हास्पिटल के पास ही उतर गयी साथ में रसिया युवक भी उतर गया। अब आगे क्या हुआ पता नही, पर रास्ते भर यही सोचता रहा कि बाप की उम्र के वे पुरूष और बेटी की उम्र की लड़की और ऐसा व्यवहार? कितना गिर गया है यह समाज? यह तो मेरी आखों देखी सच घटना है।और न जाने कितनी ही घटनाएं घटित होती रहती है पता ही नहीं लगता। प्रश्न है क्यों ? सच जो मैंने देखा
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4 comments:
बधाई
अच्छा लिखते हो
गुड कीप इट अप
मैं जब तुमसे अपनी तुलना करता हूं तो खुद को तुम्हारे करीब पाता हूं। नोएडा में रहते हुए 392 और 398 के सफर के दौरान मैंने कई बार यही महसूस किया। पर भाई क्या कर सकते हो। पूरे हिंदूस्तान को तो नहीं बदल सकते न।
यहां बाप अपनी ही बेटी का बलात्कार कर डालता है, बस ऐसी घटनाएं कम होती हैं या बस शराब के नशे में।
बस जागरूकता रखो और खुद संयम रखो, दुनिया तो अपनी रफ़तार से चलती रहेगी।
जरा अपना ब्लॉग भी देखना
http://www.shuruwat.blogspot.com/
यदि स्त्री हो तो यह सब झेलना ही पड़ता है । किस किस से भिड़ोगे ? वैसे मेरी पुत्री की एक सहेली ने एक ऐसे सज्जन को जो सबक सिखाया यादगार है । उसने अपने दोनों हाथों से एक सीट को पकड़ा और दोनों पैरों से महाशय को जो दुलत्ती मारी शायद वे जीवन भर याद रखेंगे ।
घुघूती बासूती
good dear u writes very well keep it up good going as per my knowledge u r doing some course in mass communication this article is really impressive best of luck for your future
neeshoo..
it's good ki aaj bhi tum jaise log hain society mein jo in buraiyon ko dekhte hain aur uske khilaf kuch krne ki sochte hain..i respect your feelings..aaj kal to logon ne dekh kar talna seekh liya hai..wo do ladkiyan tumhari kuch nahi lagti thi par jo tumne kiya that shows ki humanity naam ki bhi koi cheez hoti hai..ham sabka aapas mein manavta ka rishta to hai hi na..kash log ye yaad rakhte aur aadmiyon ki tarah behave krte..to shyad janwaro ki kami hoti aur ek sabhya samaj milta..thanks 4 the article..i m givin u thanks coz i m also a girl..i salute u..keep writing
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