दर्द समझने के लिए मां होना जरूरी है या नहीं ? बहस
राजनीति की चुनावी सरगर्मियां अपने चरम पर है अपने अपने झोली को सभी भरने के लिए साम ,दाम , दण्ड , भेद सभी औजारों का प्रयोग कर रहे हैं । उत्तर प्रदेश की गर्मी कुछ ज्यादा ही उबाल मार रही है । वरूण के बयान और फिर जेल का घटनाक्रम राजनीतिक पार्टियों को अभी भी खूब भा रहा है । उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती ने पत्रकार सम्मेलन में कहा था कि""मेनका केवल एक बेटे का दर्द समझती है मैं करोड़ों बेटों का दर्द समझती हूँ. माँ का दर्द समझने के लिए माँ होना ज़रुरी नहीं है. मदर टरेसा भी माँ नहीं थी लेकिन उन्होंने प्यार पूरे विश्व को दिया" माया वती ने बात को और जोड़ा कि - मेनका हजारों मां के दर्द से वाकिफ नहीं है , वह अपने बेटे का दर्द ही समझती हैं । मेनका अगर अच्छी मां होती तो वह वरूण को अच्छे संस्कार देती ।
मेनका गांधी ने माया पर पलटवार करते हुए कहा - कि जो खुद मां नहीं वो भला क्या मां का दर्द समझेगी । इसलिए माया क्या जाने मां का दर्द ।साथ मेनका ने यह भी कहा कि माया " मदर टरेसा न बनने की कोशिश करे " ।
एक दूसरे को बातों कि ऐसी चोट पहुँचायी जो कि सहनीय नहीं है । अपना दामन माया पहले देखती तो ज्यादा ही ठीक था । किसी के आपसी रिश्ते पर इस तरह के कमेंट बेहद घटिया और तुच्छ राजनीति है । वरूण ने जो किया है सही या गलत उसकी सजा भुगत रहे हैं । मैं वरूण के सांप्रदायिक भाषण का समर्थन नहीं करता पर मायावती के इस बयान को बहुत तुच्छी बात मानता हूँ । किसका भला मायावती खुद समझती हैं । खुद तो जबर्दस्ती ठर सीनाजोरी के पैसे से जन्मदिन ,अरबों की संपत्ति बनायी जनता के पैसों से , ताजमहल प्रकरण में करोडों का घोटाला किया । अभी और कुछ बाकी है प्रेम और दर्द देने को शायद ।
3 comments:
पहली बार आपसे शब्दशः सहमत ! नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली !
अर्विन्द जी की बात ही मेरी बात है...
धन्यवाद
जो कुछ कह जायें वहीं कम है ।
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