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Friday, April 3, 2009

मुक्तक .............[ वन्दना श्रीवास्तव जी की कलम से ]

दिल भी है और धड़कन भी
मन भी है और तड़पन भी
तू, तेरी याद और कुछ बंधन हैं
कैसे जियेंगें अब यही उलझन है

तुझे चाहत थी अपनी पलकें मेरी पलकों से मिलाने की
सांसों से उतर रूह में बस जाने की
आंधी कुछ यूँ चली,मिलने से पहले पलकें बंद हुइ
सांसे थमी, रूह में बसने की चाहत खत्म हुई।

मेरी गजल मेरी शायरी है वो
मेरा तबस्सुम मेरी सादगी है वो
लोग कहते हैं कि मैं भूल जाऊ उसे
कैसे भूलू मेरे कल्ब की धड़कन है वो

खुशबू ही तो हूँ बिखर जाने दीजिये
दिल की दुनिया उजड़ जाने दीजिये
मुझे खोने का गम आखिर क्यूँ कर है
मेरी मौत से ही सही जिंदगी उनकी संवर जाने दीजिये

थोड़ी सांस की फांस अभी बाकी है
आपके आने की आस अभी बाकी है
आस टूटे न कभी ये दुआ है मेरी
जिंदगी से जिंदगी का मेल अभी बाकी है

दुखों के भंवर में सुखों को हम भूल चले हैं
कभी हम तुम साथ थे उस साथ को भूल चले हैं
तुमसे बिछड़े एक जमाना गुजर गया है मगर
तुम्हें भुलने कि कोशिश में हम खुद को भूल चले हैं ।

3 comments:

हिन्दी साहित्य मंच said...

वन्दना जी आपके मुक्तक पढ़कर आनंदित हुए । शब्द चयन और आपके भाव बहुत ही सुन्दर लगे । ऐसे ही लिखती रहे हमारी शुभकामनाएं

Unknown said...

वन्दना जी क्या बात है ? बहुत खूब , बेहतरीन लेखन के लिए आपको बधाई । बहुत अच्छा लगा पढ़कर । शुभकामनाएं

Yogesh Verma Swapn said...

achchi rachna.