जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Monday, April 6, 2009

जानता हूँ तुम वही हो ...................प्रिया प्रियम तिवारी

जानता हूँ तुम वही हो,
वही शर्मीली गुड़िया,
बोलती आखें,
मुस्कुराता चेहरा,
सपनों में खोयी हुई,
दुनिया से बेगानी,
अपनी ही दुनिया में गुम-सुम,
जानता हूँ तुम वहीं हो।
पर वो मासूमियत ,
अब तुम में नहीं रही ,
कहते हैं वक्त के साथ,
सब कुछ बदल जाता है,
और तुम भी बदल गयी,
जानता हूँ तुम वहीं हो।।
पहले तुम खिलखिलाती थी,
बेवजह अचानक ही,
आज भी तुम वैसी ही दिखती हो ,
पर ............
अंदर से हताश
टूटी हुई,
जानता हूँ तुम वही हो,
और झेल रही हो,
टूटे हुए सपनों का दर्द ,
अपने कहे जाने वाले ,
अनजाने , अनकहे रिश्तों का दर्द,
जानता हूँ तुम वही हो।

8 comments:

अनिल कान्त said...

hmmmm...mashaallah !!

आलोक सिंह said...

बहुत गहराई से दर्द को उकेरा है
झेल रही हो,
टूटे हुए सपनों का दर्द ,

mehek said...

जानता हूँ तुम वही हो,
और झेल रही हो,
टूटे हुए सपनों का दर्द ,
अपने कहे जाने वाले ,
अनजाने , अनकहे रिश्तों का दर्द,
जानता हूँ तुम वही हो।
sach dard ko bayan karne ka andaaz bahut achha laga,sunder rachana bhavpurn.

हिन्दी साहित्य मंच said...

बहुत सुन्दर रचना । बधाई

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कविता में शब्द-संयोजन और भाव उत्तम हैं।
बधाई।

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया ...

Yogesh Verma Swapn said...

dard mrhsoos ho raha hai.

Dr.Bhawna Kunwar said...

बहुत सुंदर भाव...