अपना इतिहास पुराना भूल गये
विरासत का खज़ाना भूल गये
रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
बसंतों का जमाना भूल गये
दौलत की अँधी दौड मे लोग
मानवता निभाना भूल गये
भूल गये गरिमा आज़ादी की
शहीदों का कर्ज़ चुकाना भूल गये
जो धर्म के ठेकेदार बने
खुद धर्म निभाना भूल गये
पत्नी के आँचल मे ऐसे उलझे
माँ का पता ठिकाना भूल गये
पर्यावरण पर भाषण देते देते
वो पेड लगाना भूल गये
भूल गये सब प्यार का मतलब
लोग हंसना हसाना भूल गये
9 comments:
बेहद खूबसूरत गजल पेश की आपने । बधाई
निर्मला जी , हमेशा की तरह इस बार भी सुन्दर गजल । बहुत बहुत बधाई
निर्मला जी आपकी ग़ज़ल बहुत प्यारी है
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
har sher lajawab,sunder gazal
बहुत सुंदर लगी आप की यह गजल ओर गजल का हर शेर
धन्य्ववाद
गजल के भाव अच्छे हैं।
बधाई।
बहुत बढिया लगा ... बधाई निर्मला जी।
bahut khoob kya baat hai, chand panktiyon mein aapne kaafee kuchh keh diya. likhte rahein.
निर्मला जी आपकी यह कविता आज की तमाम सच्चाईयों को बयां कर रही है बहुत ही बेहतरीन रचना के लिए आपको बारम्बार बधाई
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