जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Sunday, April 5, 2009

गजल ....................निर्मला जी

अपना इतिहास पुराना भूल गये
विरासत का खज़ाना भूल गये

रिश्तों के पतझड मे ऐसे बिखरे
बसंतों का जमाना भूल गये

दौलत की अँधी दौड मे लोग
मानवता निभाना भूल गये

भूल गये गरिमा आज़ादी की
शहीदों का कर्ज़ चुकाना भूल गये

जो धर्म के ठेकेदार बने
खुद धर्म निभाना भूल गये

पत्नी के आँचल मे ऐसे उलझे
माँ का पता ठिकाना भूल गये

पर्यावरण पर भाषण देते देते
वो पेड लगाना भूल गये

भूल गये सब प्यार का मतलब
लोग हंसना हसाना भूल गये

9 comments:

हिन्दी साहित्य मंच said...

बेहद खूबसूरत गजल पेश की आपने । बधाई

Unknown said...

निर्मला जी , हमेशा की तरह इस बार भी सुन्दर गजल । बहुत बहुत बधाई

अनिल कान्त said...

निर्मला जी आपकी ग़ज़ल बहुत प्यारी है

मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

mehek said...

har sher lajawab,sunder gazal

राज भाटिय़ा said...

बहुत सुंदर लगी आप की यह गजल ओर गजल का हर शेर
धन्य्ववाद

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

गजल के भाव अच्छे हैं।
बधाई।

संगीता पुरी said...

बहुत बढिया लगा ... बधाई निर्मला जी।

अजय कुमार झा said...

bahut khoob kya baat hai, chand panktiyon mein aapne kaafee kuchh keh diya. likhte rahein.

मोहन वशिष्‍ठ said...

निर्मला जी आपकी यह कविता आज की तमाम सच्‍चाईयों को बयां कर रही है बहुत ही बेहतरीन रचना के लिए आपको बारम्‍बार बधाई