सूरज की धूमिल किरणें
जब पड़ती हैं मुख पर
पीलापन लिये नजर आती हैं
शांत हो जाता है चंचलमन
ये प्रतीक है गोधूलि के
रात के आने का
नयी शुरूआत का
अंत देता है सदैव
नयापन, नया युग
बदलाव की दिशा
प्रारम्भ से अंत है
यही नियम है
यही चक्र है
यही नियति है
समय की
ब्रम्हाण्ड की भी ।
3 comments:
समयचक्र
या
वसंतचक्र
आया है
जिसने घुमाया
है, ठीक से
ही घुमाया है।
भाई बढ़िया कविता लिखी है समयचक्र . आभार
क्या दार्शनिकों जैसी कविता लिख डाली जी !
बहुत बढिया !
Post a Comment