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Thursday, February 5, 2009

मेरा काव्य- "घड़ी "


दीवाल पर टंगी एक घड़ी कहती है -
टिक-टिक, टिक-टिक
बदलता है समय,
एक पल को वर्तमान,
और
फिर वही पल,
अतीत बन जाता है ।
एक परिधि में घूमती हैं,
घड़ी की सुईयां,
अनवरत ही , बिना रूके,
कुछ ऐसे ही-
जिंदगी का सफर होता है ।
लीक पर चलते चलते,
रूकते हैं हम,
थकते हैं हम,
सुसताते हैं हम,
पर
टिक-टिक, टिक-टिक
बदलता है समय,
बिना रूके,
बिना थके,
बढ़ते रहो, चलते रहो,
राह पर अपने ,
समय के साथ-साथ ।।

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