इटावा की छह वर्षीय दलित लड़की कोमल की पिटाई का मामला देश भर को शर्मसार किया । मामले की छानबीन से पता चला की अंजू नाम की महिला द्वारा २८० रूपये की चोरी का लगाया गया आरोप झूठा था। ऐसे में बाल सुरक्षा कानून को कड़ाई से लागू होना चाहिए । जिससे इस तरह की घटना दुबारा न हो। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार ने एक डीएसपी , एसएचओ, ठर दो पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो चुकी है ।
आये दिन पुलिस की बर्बरता के नमूने सामने आते रहते हैं । कुछ समय बाद ये मामले दब जाते हैं । और फिर कुछ दिनों बाद कोई न कोई ऐसी घटना होती है ,जिससे समाज और देश का सर झुकता है । कानून ने सभी को बराबरी का दर्जा दिया है पर यहां ऐसी घटनाएं कानून को धता बताती हैं ।कोमल जैसी लड़की के साथ हुआ बर्ताव पुलिस कि गैरजिम्मेदाराना हरकतों को उजागर करता है । उच्च वर्ग की कठपुतली बनता हुआ प्रशासन निम्न वर्ग के लिए खतरा है । ऐसे में प्रशासन की खामियों को दूर करने के लिए सरकार को सख्त कदम उठाये जाने चाहिए ।
गुरूवार को राष्ट्रीय बाल पुरस्कार वितरण समारोह में यूपीए अध्यक्ष सोनिया जी ने बच्चों को भगवान का रूप कहा और ऐसी घटनाओं की भर्त्सना की । पर यहां पर मेरा ये मानना है कि केवल सरकार ही क्यों ? समाज को ऐसी घटना के प्रति आवाज उठानी चाहिए। तथा नन्हें बच्चों पर ऐसे किसी प्रकार का अत्याचार न हो । क्या समाज में अभी ये भेदभाव कम हुआ है ? तो जवाब यही आयेगा कि नहीं । तो हम अपने आसपास को अच्छा बनाये जिससे अब कोमल जैसे बालिका को इस तरह के अत्याचार से गुजरना न पड़े। और पुलिस को कारर्वाही करने से पहले पूरी छानबीन करके ही को कदम उठाये। कुछ मुट्ठी भर पैसे के लिए न बिके ये रखवाले। तो ही समाज में ऐसी बुराई को कम किया जा सकेगा ।
6 comments:
बहुत अच्छी पोस्ट लिखी है।बधाई।
माना कि गरीबों की बेटी भगवान भरोसे ही होती है....पर भगवान भी तो ये नहीं समझते ....समाज और पुलिस हैवान हैं यहां पर।
माना कि गरीबों की बेटी भगवान भरोसे ही होती है....पर भगवान भी तो ये नहीं समझते ....समाज और पुलिस हैवान हैं यहां पर।
चाहे यह बच्ची गरीब थी या अमीर, सवाल आता है है कया इतनी छोटी बच्ची को इस बेरहमी से मारा जा सकता है??दुनिया के किस कानुन मे लिखा है यह सब ?? अब वो बच्ची उम्र भर डरी डरी रहेगी, अगर यह बच्ची चोर भी थी तो उस बच्ची का क्या कसुर? उसे कय मालुम पेसा कया है पकडते उसे जो इस बच्ची के पीछे था, क्या यह पुलिस वाले दुध के धुले है, क्या इन्होने रिशवत नही ली, अगर यह सच्चे पुलिस वाले होते तो कभी भी एक बच्ची पर जुल्म नही करते , यह खुद हरामी थे, ओर उस हरामी पन का गुस्सा इस मासुम पर उतारा.
लानत ओर लानत इन लोगो पर.जब भी कोई ऎसा केस हो जनता चढ जाये उस पुलिस स्टेशन पर , ओर पकड कर इतना मारे उस पुलिस वाले को कि वो सारी जिन्दगी घर बेठा अपनी हड्डिया गिनता रहे, ओर अगर जनता यह नही करेगी तो कभी हमारे बच्चे भी इन कमीनो के हाथ लग सकते है.
धन्यवाद
पुलिस वालों की महानता है ।
उन्हें तो अवार्ड दिया जाना चाहिए इस साहसिक कार्य के लिए ।
असल में पुलिस अभी भी अंग्रेज के ज़माने के जेलर वाली मानसिकता में ही काम कर रही है.
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