जन संदेश

पढ़े हिन्दी, बढ़े हिन्दी, बोले हिन्दी .......राष्ट्रभाषा हिन्दी को बढ़ावा दें। मीडिया व्यूह पर एक सामूहिक प्रयास हिन्दी उत्थान के लिए। मीडिया व्यूह पर आपका स्वागत है । आपको यहां हिन्दी साहित्य कैसा लगा ? आईये हम साथ मिल हिन्दी को बढ़ाये,,,,,, ? हमें जरूर बतायें- संचालक .. हमारा पता है - neeshooalld@gmail.com

Wednesday, February 25, 2009

जैसे इन सब को पता है कि..............................................तुम आ चुकी हो,

हवाओं में प्यार की खुशबू,
बिखरी हुई है ,
फिजाएं भी महकी,
हुई है,
खामोश रातें रौशन ,
हुई हैं,
चांदनी भी चंचल ,
हुई है ,
बूदें जैसे मोती,
हुई हैं,
सूरज की किरणें चमकीली
हुई हैं,
बागों की कलियां खिल सी ,
गयी हैं,
अम्बर से घटाएं ,
बहने लगी हैं,
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।

9 comments:

"अर्श" said...

badhiya likha hai achhi bhavabhibyakti....




arsh

222222222222 said...

महकती हुई कविता।

मुंहफट said...

तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।

...वह आए, न आए, कविता तो आ चुकी. बधाई सुकोमल सी रचना पर.

Sudhir (सुधीर) said...

बहुत सुंदर ...

BHAV SARITA said...

pyar hai hi aisi bhavna ki jiske ird gird sari srashti hi ghoomne lagtee hai .saral sahaj bhav men apne sundar rachana di hai .likhte rahiye .

दिगम्बर नासवा said...

मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो

खूब सूरत रचना ...........महकती महकाती हुयी

Vandana Shrivastava said...

बहुत बढ़िया नीशू...!!

बाल भवन जबलपुर said...

Wah nishoo ji
mazaa aa gayaa
shukriyaa

makrand said...

bahut khub