हवाओं में प्यार की खुशबू,
बिखरी हुई है ,
फिजाएं भी महकी,
हुई है,
खामोश रातें रौशन ,
हुई हैं,
चांदनी भी चंचल ,
हुई है ,
बूदें जैसे मोती,
हुई हैं,
सूरज की किरणें चमकीली
हुई हैं,
बागों की कलियां खिल सी ,
गयी हैं,
अम्बर से घटाएं ,
बहने लगी हैं,
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।
9 comments:
badhiya likha hai achhi bhavabhibyakti....
arsh
महकती हुई कविता।
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो।।
...वह आए, न आए, कविता तो आ चुकी. बधाई सुकोमल सी रचना पर.
बहुत सुंदर ...
pyar hai hi aisi bhavna ki jiske ird gird sari srashti hi ghoomne lagtee hai .saral sahaj bhav men apne sundar rachana di hai .likhte rahiye .
मिट्टी की खुशबू,
फैली हुई हैं, चारो तरफ
जैसे इन सब को पता है कि-
तुम आ चुकी हो,
वापस आ चुकी हो
खूब सूरत रचना ...........महकती महकाती हुयी
बहुत बढ़िया नीशू...!!
Wah nishoo ji
mazaa aa gayaa
shukriyaa
bahut khub
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