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Sunday, February 22, 2009

"आज तुम फिर खफा हो मुझसे"""""""जानता हूँ मैं,


आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं,
न मनाऊगा तुमको,
इस बार मैं।
तुम्हारा उदास चेहरा,
जिस पर झूठी हसी लिये,
चुप हो तुम,
घूमकर दूर बैठी,
सर को झुकाये,
बातों को सुनती,
पर अनसुना करती तुम,
ये अदायें पहचानता हूँ मैं,
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मैं।
नर्म आखों में जलन क्यों है?
सुर्ख होठों पे शिकन क्यों है?
चेहरे पे तपन क्यों है?
कहती जो एक बार मुझसे,
तुम कुछ भी,
मानता मै,
लेकिन बिन बताये क्यों?
आज तुम फिर खफा हो मुझसे,
जानता हूँ मै।।

9 comments:

भगीरथ said...

अच्छी रोमानी कविता
यहां भी पधारें
http://gyansindhu.blogspot.com

अनिल कान्त said...

बहुत ही अच्छी रचना है ....आज फिर तुम मुझ से खफा हो

प्रशांत मलिक said...

bahut achhi kavita..

Udan Tashtari said...

क्या बात है..बहुत खूब नीशू.

राज भाटिय़ा said...

वाह बहुत ही सुंदर कविता.
धन्यवाद

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

हाँ भई हाँ.........अच्छी है...........अब प्रेम है तो अच्छा ही होगा.............और प्रेम कविता..........वो भला क्यूँ ना अच्छी हो........!!

परमजीत सिहँ बाली said...

बहुत सुन्दर रचना है। बधाई।

दिगम्बर नासवा said...

बहुत खूब है रचना
प्यार में मनाना और खफा होना तो आम बात ही
पर अपने सुंदर तरीके से बाँधा है इसे

रंजू भाटिया said...

अच्छा लिखा है आपने