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Wednesday, February 4, 2009

"जिंदगी की जद्दोजहद में - इंसान"

जिंदगी की जद्दोजहद में,
इंसान
छूना चाहता है बुलंदी को,
आशाओं की लौ
जलती है , बुझती है
कभी-कभी
दूर तक दिखती है राह,
जिस पर चलता है इंसान,
कांटों की चुभन में ,
कंकडों की ठोकरों में,
कपकपाती सर्द में,
चिलचिलाती धूप में,
बारिश की बूदों में,
नहीं थकता
नहीं झुकता
और
नहीं मानता है हार,
खुद से खुद की है तकरार
करता है कोशिशें बार-बार
एक आशा , एक उम्मीद
लिये चलता है दिल में
कि शायद-
होगें सपने सकार,
जिंदगी की जद्दोजहद में इंसान
छूना चाहता है बुलदी को।
खामोश ख्वाहिशें,
कुछ दबी फरमाइशों,
के बीच
मुस्काराती है ये जिदगी,
करती है बात खुद से,
देती है हौसला,
कम करती है फासला,
ये जद्दोजहद ही है
जिंदगी ।।

5 comments:

Anonymous said...

khoobsoorat panktiyaan hain...

kabhi fursat mein idhur aaiyie
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MANVINDER BHIMBER said...

नहीं मानता है हार,
खुद से खुद की है तकरार
करता है कोशिशें बार-बार
एक आशा , एक उम्मीद
लिये चलता है दिल में
कि शायद-
होगें सपने सकार,
जिंदगी की जद्दोजहद में इंसान
छूना चाहता है बुलदी को।
सुदर रचना है...बधाई

Sachin Jain said...

nice.....:)

Anonymous said...

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Anonymous said...

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