आज दुनिया की अनेक भाषाएं लुप्त होने के कगार पर हैं। उन्हें बोलने वालोंकी संख्या में दिन ब दिन कमी आयी है ।यूनेस्को की ताजा जारी खबर के अनुसार विश्व में लगभग ६००० भाषाएं है , जिसमें से २५०० पर लुप्त होने का खतरा मडरा रहा है । भारत में १९६ बोलियों पर संकट है लुप्त होने का । जबकि उसके बाद अमेरिका है दूसरे नं पर जहां लगभग १९२ भाषाएं लुप्त होने की कगार पर हैं। विश्व में १९९ भाषाएं ऐसी है जिन्हें १० लोगो से भी कम बोलते हैं।
भाषा के खत्में से संस्कृति पर भी खतरा आयेगा जो कि एक विशिष्ट पहचान होती है । तो क्या दुनिया से विविधता समाप्त हो जायेगी ? और संसार एकरंगी हो जायेगा । भाषाओं के कमजोर होने का मामला गहराता रहा है । दरअसल भाषा का संबध विकास से है । जो समुदाय जितना विकसित हुआ उसकी भाषा भी उतनी ही विकसित हुई।और ताकतवर भाषा ने छोटी भाषाओं को अपने धार में बहा ले चली ।
भाषा के जरिये व्यक्ति अपना परिवेश से रिश्ता कायम रखता है । जब भाषा का स्तर वृहत न होकर कम हो जाता है । तो व्यक्ति मजबूत भाषा को अपनाता है। और फिर हम अपनी जुबान बदल लेते हैं।भूमंडलीकरण ने भूगोल की सारी दिवारें तोड़ दी । हर किसी को एक भाषा अपनानी पडी। आज रोजगार के लिए,व्यापार और तकनीक के लिए एक ही भाषा है वह है अंग्रेजी । ऐसे भारत जैसे देश पर भी भाषा का संकट है । यह दुर्भाग्यपूर्ण है पर सच्चाई यही है ।
3 comments:
अच्छी जानकारी। लुप्त होती भाषाओं की जानकारी भी विस्तार से दीजिए।
uf! narayan narayan
भाषा वाशा भाड़ में जाय
अभी तो हम स्लमडाग की खुशी में हुलस तो लैं!
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