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Monday, February 23, 2009

बनके खुशबू गुलशन को मेरे महकाती

बनके खुशबू गुलशन को मेरे महकाती ,
ख्वाबों में आकर ,जिंदगी तुम रंग जाती,
करती न बात कोई, बस यूँ ही मुस्काती।
अटखेलियों में गुजरता वक्त, जब तुम आती।।
मन्नतों में मांगता ,क्या खुदा से साथी,
बंद आखें करता तो ,तुम ही नजर आती ,
इश्क के साये से क्यों तुम दूर जाती ,
पा जाता तुमको , किस्मत गर ठहर जाती।।

4 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत बढ़िया, बधाई.

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर...महा शिव रात्रि की बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं..

महावीर said...

बहुत सुंदर रचना है।
मन्नतों में मांगता ,क्या खुदा से साथी,
बंद आखें करता तो ,तुम ही नजर आती ,
बहुत ख़ूब!
महावीर शर्मा

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

इश्क के साये से, हम डरते नही हैं।

कुछ पुराने घाव हैं, भरते नही हैं ।।